अभियुक्त को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304 के अन्तर्गत दोषी ठहराने के लिये अभियोजन को यह तथ्य साबित करना आवश्यक है कि अभियुक्त द्वारा ही मृतक की मृत्यु कारित की गई थी परन्तु अभियोजन के प्रस्तुत साक्ष्यों से अभियुक्त द्वारा मृतक की मृत्यु कारित करना साबित नही पाया जाता है।
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इस साक्षी ने उपरोक्त पॉचों अभियुक्तों को जघन्य किस्म का अपराधी बताया है तथा गिरोह बना कर अपराध कारित करना तथा क्षेत्र व समाज में लोक व्यवस्था और शांति व्यवस्था, सनसनीखेज घटनाओं को अन्जाम देकर बाधित करना कहा है, जिसके सम्बंध में एन0 एस0 ए0 के अंतर्गत कार्यवाही किया जाना कहा।
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यद्यपि निष्पक्ष साक्षियों ने मुलजिमान द्वारा घटना कारित करना नहीं बताया गया है लेकिन उनके द्वारा इस बात को तस्दीक किया गया है कि शोर सुन कर जब वे मौके पर पहुंचे तो चुटैल जगमोहनसिहं गम्भीर रूप से घायलावस्था में मौके पर पड़ा हुआ था और डाक्टर द्वारा उसका प्राथमिक उपचार किया गया था।
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पत्रावली पर प्रदर्श क-1 रिपोर्ट की तहरीर है जिसके अनुसार रिपोर्टर ने मृतका की मृत्यु उसके पति अभियुक्त पनी राम तथा उसके सगे बेटे विरेन्द्र द्वा रा 12, 000/-रूपये मृतका द्वारा उपरोक्त दोनों बाप बेटों को न दिये जाने के आधार पर दोनों अभियुक्तों द्वारा एक साथ एक राय होकर हत्या कारित करना बताया है।
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जैसा कि वाद बिन्दु सं0-1 के निर्णीत होने से भी स्पष्ट है, जिससे याचिकर्ता की ओर से पेश किए गए गवाहान द्वारा भी कथित घटना विपक्षी सं0-1 द्वारा मोटर साईकिल सं0-डी0एल0 38ए. एच.-5671 को तेजी व लापरवाही से चलाकर कारित करना अभिकथित किया है, जिसके विरूद्ध कोई भी खण्डन विपक्षीगण की ओर से नहीं किया गया है।
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अवर न्यायालय द्वारा मामले में सभी अभियुक्तगण का फाइनेंस कंपनी में एक्जीक्यूटिव व मैनेजर होने से कथित घटना कारित करना सम्भव नहीं होना बताया गया है, जिसको माननीय अवर न्यायालय द्वारा गलत विवेचना की गयी है, केवल इस आधार पर कि मुलजिमान फाइनेंस कंपनी में मैनेजर हैं और वह उक्त घटना कारित नहीं कर सकते हैं, न्यायोचित नहीं हैं।
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यदि अभियोजन यह सिद्ध करने में सफल हो जाता है कि सामान्य प्रयोजन, जिसके लिए टोली (गैंग) के सदस्य सहयुक्त थे, अभ्यासतः चोरी या लूट का अपराध कारित करना था, तब भी अभियोजन धारा 401 का अपराध सिद्ध करने में सफल हो जाएगा, चाहे वह किसी चोरी या लूट के अपराध के वस्तुतः कारित होने के लिए कोई साक्ष्य पेश नहीं भी करता हो।
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सिर्फ पीड़िता ही दोनों अभियुक्तगण द्वारा बलात्कार करने की कहानी बताती है, परंतु पीड़िता के बयान आपस में विरोधाभासी हैं और पीड़िता दोनों अभियुक्तगण में से न्यायालय में आकर केवल एक ही अभियुक्त जाविर उर्फ जाकिर हुसैन द्वारा ही बलात्कार करना बताती है और दूसरे अभियुक्त शब्बूखान द्वारा अपराध कारित करना नहीं बताती है कि यह वह व्यक्ति है, जिसने उसके साथ बलात्कार किया।
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उपरोक्त नजीर के सिद्धान्त वर्तमान केस पर लागू होते हैं क्योंकि चिक प्रथम सूचना रिपोर्ट याची पक्ष और विपक्षी वाहन स्वामी द्वारा दाखिल की गई है और प्रथम सूचना रिपोर्ट के अनुसार वाहन स्वामी ने अपने वाहन चालक की तेजी और लापरवाही से दुर्घटना कारित करना और उस दुर्घटना में 6 व्यक्तियों की मौके पर मृत्यु होना तथा 11 व्यक्तियों का घायल होना स्वीकार किया है।
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जहां तक आदेश दि0-29-1-09. का संबंध है, आदेश दि0-29-1-09. के पाठन के बाद यह परिलक्षित होता है कि निम्न न्यायालय के विद्वान अधिकारी प्रतिवादीगण के पक्ष के जबाव एवं द्वितीय जबाव प्रस्तुत करने के बावजूद बहस सुनने और निर्णय में पत्रावली लगाकर मामले में विलंब कारित करना चाहते हैं तथा निगरानीकर्ता भी तरह-तरह के प्रार्थनापत्र देकर चुनाव याचिका को लंबे समय तक निर्णीत नहीं होने देना चाहते हैं।