अतः अल्पकालिक स्मरण को एक ऐसी प्रक्रिया कहा जा सकता है, जो मनुष्य की सक्रियता की ऐसी कालगत सीमाओं में संपन्न होती है, जिनमें उद् भासित सामग्री का केवल स्वचालित संसाधन किया जा सकता है ।
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सन 1788 से ' एशियाटिक रिसर्चेज' शोध पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ और कुछ वर्षों बाद ही सेन्ड्राकोट्टस को चन्द्रगुप्त मौर्य से समीकृत किया गया, जोन्स का यह प्रसिद्ध शोध लेख भारतीय इतिहास को कालगत क्रम में व्यवस्थित करने का आधार बना।
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एक ही देश या समाज एक समय में एक जैसी स्थितियों का गवाह होता है भोगता है लेकिन लेखक की लेखनी या शब्दों में गुंथी दास्तान ही किसी देश और काल का इतिहास बनती है जो कालगत सीमाओं से मुक्त होती है.
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सन 1788 से ' एशियाटिक रिसर्चेज ' शोध पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ और कुछ वर्षों बाद ही सेन्ड्राकोट्टस को चन्द्रगुप्त मौर्य से समीकृत किया गया, जोन्स का यह प्रसिद्ध शोध लेख भारतीय इतिहास को कालगत क्रम में व्यवस्थित करने का आधार बना।
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साहित्य की आनुपूर्वी-इस सन्दर्भ में भी ब्लूमफील्ड की यह अवधारणा, कि अथर्व-साहित्य में ब्राह्मण, श्रौतसूत्र और गृह्यसूत्र के संकलन का कालगत सम्बन्ध उलट जाता है तथा कौशिक-गृह्यसूत्र वैतान-श्रौतसूत्र से पहले रचा गया था और वैतान-श्रौतसूत्र गोपथ-ब्राह्मण से पहले *, अग्राह्य प्रतीत होती है।
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मैं उस घट का या अपने दुःख का स्मरण स्वयं घट और दुःख के अनुभव कीअविद्यमानता में करता हूं, स्मृति में ये अनुभव नहीं इसके प्रत्ययात्मकआकार और उद्गृहीत बिम्ब प्रेक्षकभाव को प्रस्तुत होते हैं जिनका आकलनअस्मिता के काल-व्यापी अकालिक एकत्व में होता हैः कलातीत में घट-ग्रहण कादुःखिता के कालगत अनुभव के कालातीत आकार को उद्गृहीत कर आकारात्मक काल कीउद्गृहीत व्यवस्था में संस्थानित करता हूं.
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| जिन टुकड़ों को यहाँ प्रेषित किया गया है उन्हें पढ़कर मस्तिष्क उसी अवधारणा को पुनः दोहराना चाहता है, जिसका सारांश संभवतः यह होना चाहिए “उत्कृष्ट और कालजयी लेखक न सिर्फ अपनी कालगत पारिवारिक सामाजिक राजनैतिक या भौगोलिक प्रष्ट भूमि से गुन्थित होता है बल्कि अपनी चेतना में उफनते हुए अनुभवों/पीडाओं को ही वो शब्द रूप दे स्वयं की कुंठाओं और अवसाद से मुक्ति का प्रयास भी करता है |'
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इसके पश्चात् छत्तीसगढ़ की विशिष्टता मृत्तिका दुर्ग यानि मिट् टी के परकोटे वाले गढ़ हैं, किन्तु इन गढ़ों का विस्तृत और गहन अध्ययन अब तक न होने से तथा वैज्ञानिक रीति से उत्खनन के अभाव में इनके कालगत महत्व को प्रामाणिक रूप से स्थापित नहीं किया जा सका है, तथापि वास्तु कला की दृष्टि से वर्तमान में उपलब्ध अवशेष ही तत्कालीन वास्तु प्रयास और मानवीय श्रम की गाथा गढ़ने के लिए पर्याप्त हैं।
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इधर कथा गद्य की विवशता यह है कि उसे वाक्यों के संगतिमूलक संसर्ग पर निर्भर रहना पड़ता है, जिसका साहित्यिक परिणाम यह होता है कि वाक्यों की इस संशक्ति के कारण इनके माध्यम में रचे जा रहे यथार्थ में भी एक संगति या क्रम-व्यवस्था रच जाती है-स्पष्ट है कि यह क्रम व्यवस्था देशगत और कालगत होती है, जबकि अनुभूति या रचना के क्षण देश और काल की सीमाओं की अयथार्थता में ही संभव है.
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| जिन टुकड़ों को यहाँ प्रेषित किया गया है उन्हें पढ़कर मस्तिष्क उसी अवधारणा को पुनः दोहराना चाहता है, जिसका सारांश संभवतः यह होना चाहिए '' उत्कृष्ट और कालजयी लेखक न सिर्फ अपनी कालगत पारिवारिक सामाजिक राजनैतिक या भौगोलिक प्रष्ट भूमि से गुन्थित होता है बल्कि अपनी चेतना में उफनते हुए अनुभवों / पीडाओं को ही वो शब्द रूप दे स्वयं की कुंठाओं और अवसाद से मुक्ति का प्रयास भी करता है | '' truthful vision '' संभवतः इसी का तर्जुमा है....