संध्या शर्मा का नमस्का र...... करती रहती हूं भरने की कोशि श शब् द-बूंदो से उम् मीद का घड़ा टप-टप टपकती आस की बूंदों को गि नती-सहेजती हैं दो आतुर नि गाहें कि तभी पी जाता है आकर, संदेह का काला कौआ घड़े का सारा पानी भर जाती है देह में बेतरह थकान सोचती हूं कहां मि लेगा मुझे यकीन वाला वो लाल कपड़ा जो इस घड़े के मुंह पर कसकर बांध दूं क् योंकि ये काला कौआ तो मुझसे भागता ही नहीं....... तस् वी र.... मेरी आंखों में आस् मां..
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संध्या शर्मा का नमस्का र...... करती रहती हूं भरने की कोशि श शब् द-बूंदो से उम् मीद का घड़ा टप-टप टपकती आस की बूंदों को गि नती-सहेजती हैं दो आतुर नि गाहें कि तभी पी जाता है आकर, संदेह का काला कौआ घड़े का सारा पानी भर जाती है देह में बेतरह थकान सोचती हूं कहां मि लेगा मुझे यकीन वाला वो लाल कपड़ा जो इस घड़े के मुंह पर कसकर बांध दूं क् योंकि ये काला कौआ तो मुझसे भागता ही नहीं....... तस् वी र.... मेरी आंखों में आस् मां..