कविता के क्षेत्र में मुझे छायावादी भाषा के बजाय बच्चन, नेपाली, नरेन्द्र शर्मा की काव्यभाषा अधिक ग्राह्य लगी तथा शेले, कीट्स और ऑस्कर वाइल्ड का प्रारम्भिक प्रभाव काव्य-शैली पर रहा।
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बोलचाल वे अपने नगर इलाहाबाद से सीखते हैं, तो उर्दू काव्य-शैली के प्रभाव के लिये उसके सबसे बड़े कवि मीर के प्रति आभारी हैं-‘‘ कोई न खड़ी बोली लिखना आरम्भ करे।
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शुरू से ही दोनों रमाकांत जी और सीताकांत जी की कविताओं में सुस्पष्ट काव्य-शैली, काव्य-सरंचना में बोलचाल की भाषा और आंतरिक मनोभावों को भाषा में प्रकाशित करने का प्रभावी सामर्थ्य आदि कई काव्य-गुण भरपूर थे ।
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सीधा सा सवाल यह है कि कबीर की काव्य-शैली और सामग्री ध्यान देने योग्य है या नहीं? यदि नहीं तो आ. शुक्ल की सी साफगोई से कहना चाहिए, ‘कबीर की कविता उपदेश देती है, भावोन्मेष नहीं करती'।
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सैयद ऐहतेशाम हुसैन ने उर्दू साहित्य के आलोचनात्मक इतिहास में लिखा, फ़ैज़ की काव्य-शैली प्रतीकों और प्रतिबिम्बों में निहित शक्ति का वहन करते हुए धीरे-धीरे प्रवाहमयी होती है, जो उनको भी प्रभावित करती है और उनके पाठक को भी।
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सीधा सा सवाल यह है कि कबीर की काव्य-शैली और सामग्री ध्यान देने योग्य है या नहीं? यदि नहीं तो आ. शुक्ल की सी साफगोई से कहना चाहिए, ‘ कबीर की कविता उपदेश देती है, भावोन्मेष नहीं करती ' ।
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पहली दिशा के बारे में कहा जा सकता है, जीवन के प्रति रोमांटिक अनुभवों जैसे प्रकृति-प्रेम, सौन्दर्य की उपासना तथा आध्यात्मिक और रहस्यवादी अनुभवों के सम्मिश्रण ने सारे काव्य-संगठनों और काव्य-शैली को सुदृढ़ बना समकालीन कविताओं में नवीनता और सजीवता भर दी ।
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फ़ैज़ की शायरी की वह विशेषता जिसके चलते उनके वैचारिक विरोधी भी उसके क़ायल हो जाते हैं, काफी समय से आलोचकों में मान्य है और अपने-अपने स्तर पर वे इसका कारण भी तलाशते हैं, मसलन प्रो. सैयद एहतेशाम हुसैन ने ‘ उर्दू साहित्य के आलोचनात्मक इतिहास '' में लिखा,-‘‘ फ़ैज़ की काव्य-शैली प्रतीकों और प्रतिबिम्बों में निहित शक्ति का वहन करते हुए धीरे-धीरे प्रवाहमयी होती है, जो उनको भी प्रभावित करती है और उनके पाठक को भी।