यह वर्णन संकेत करता है कि वाजपेय यज्ञ के माध्यम से काष्ठा रूपी समाधि की स्थिति में पंहुचकर समाधि से व्युत्थान का वर्णन किया गया है ।
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231 में कालगणना-निम्न है:-15 निमेष-1 काष्ठा 30 काष्ठा-1 कला 30 कला-1 मुहूत्र्त 30 मुहूत्र्त-1 दिन रात दोनों गणनाओं में थोड़ा अन्तर है।
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231 में कालगणना-निम्न है:-15 निमेष-1 काष्ठा 30 काष्ठा-1 कला 30 कला-1 मुहूत्र्त 30 मुहूत्र्त-1 दिन रात दोनों गणनाओं में थोड़ा अन्तर है।
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महाभारत के मोक्ष पर्व में अध्याय 231 में काल गणना निम्न प्रकार है-15 निमेष-1 काष्ठा, 30 काष्ठा-1 कला, 30 कला-1 मुहूर्त, 30 मुहूर्त-1 दिन-रात।
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समय की ईकाई का एक अन्य वर्णन भी हमारे ग्रन्थों में पाया जाता है-१ निमेष = पलक झपकने का समय (न्यूनतम ईकाई) २५ निमेष = एक काष्ठा ३० काष्ठा = एक
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समय की ईकाई का एक अन्य वर्णन भी हमारे ग्रन्थों में पाया जाता है-१ निमेष = पलक झपकने का समय (न्यूनतम ईकाई) २५ निमेष = एक काष्ठा ३० काष्ठा = एक
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वाजपेय यज्ञ की विधि के अन्तर्गत सर्वप्रथम यजमान / इन्द्र तथा अन्य १ ६ जन अपने-अपने रथों में बैठकर एक निश्चित लक्ष्य की ओर, जिसे काष्ठा कहते हैं, आजि / दौड लगाते हैं ।