टोली के बिछुड़े हुए हिरणों के मन भी उन्मत हो जाते है फिर प्रियतम के बिछुड़ने पर प्रियतमा किस प्रकार जीवित रह सकती है | प्रिय वस्तु का नाश संसार से विरक्ति का उत्पादन करता है | उस वस्तु बिना जीवन के सब सुख फीखे लगते है | विशेषतः हिन्दू नारी के लिए पति से बढ़कर जीवन में कोई भी प्रिय वस्तु नहीं, और जब पति की मृत्यु हो जाति है तो नारी भी “जीवै किण विध जेठवा” कहने के अलावा और कह ही क्या सकती है?
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कन्हैयालाल सेठिया की ‘ पातल और पीथल ' कविता हो या ‘ धरती धोरां री '', रेवतदान चारण का जनगीत ‘ चेत मांनखां ' हो या रमेश मयंक की कविता की पंक्तियां ‘ रूंख लगायां राख्या कोनी, मीठा फळ भी चाख्या कोनी, काटण हुया उंतावळा, बोलो किण रा भाग सरावां, किणनैं बोलां बावळा ', या फिर कल्याणसिंह राजावत के ‘ घड़ला सीतल नीर रा ' शीर्षक वाले दूहे हों या बिज्जी की कहानी ‘ घमंडी रो सिर नीचो ', बालक को आह्लाद से भर देती थीं।