माननीय उच्च न्यायालय द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया कि यदि इस बात की सम्भावना है कि जमानत पर छूटने के बाद किशोर अपराधी अपराधिक चरित्र के व्यक्तियों के सम्पर्क में आ सकता है तो ऐसे मामलों में जमानत निरस्त की जा सकती है।
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यद्यपि आरोप पत्र में चौथे अभियुक्त के रूप में अभियुक्त रवि शंकर मिश्रा का नाम अभियुक्तगण की श्रेणी में दर्ज है, लेकिन पत्रावली सेशन कमिट होते समय मुख्य न्यायिक मजिस्टेट द्वारा अभियुक्त रविशंकर मिश्रा की पत्रावली किशोर अपराधी होने के कारण पृथक करके किशोर न्याय बोर्ड को भेजी गयी है।
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उन्होंने बताया कि किशोर अपराधी को भारतीय दंड संहिता की धाराओं 365 तथा 394 के तहत लगाए गए आरोपों से बरी कर दिया गया है, जो गैर कानूनी रूप से किसी व्यक्ति को अपने कब्जे में रखने की मंशा से उसका अपहरण करने और डकैती के दौरान जानबूझकर किसी को नुकसान पहुंचाने से संबंधित है।
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अभियोजन पक्ष के सूत्रों ने बताया कि प्रिंसीपल मजिस्ट्रेट गीतांजलि गोयल की अध्यक्षता वाले किशोर न्याय बोर्ड ने किशोर अपराधी को भारतीय दंड संहिता की धाराओं 395: डकैती:, 342: गैरकानूनी कब्जे में रखना: और 412: किसी डकैती में मिली संपत्ति को बेइमानी से हासिल करना: के तहत दोषी ठहराया है।
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अभियोजन पक्ष के सूत्रों ने बताया कि प्रिंसीपल मजिस्ट्रेट गीतांजलि गोयल की अध्यक्षता वाले किशोर न्याय बोर्ड ने किशोर अपराधी को भारतीय दंड संहिता की धाराओं 395 (डकैती), 342 (गैरकानूनी कब्जे में रखना) और 412 (किसी डकैती में मिली संपत्ति को बेईमानी से हासिल करना) के तहत दोषी ठहराया है।
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पीड़ित के पिता बद्रीनाथ सिंह और उनकी पत्नी आशा देवी ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) कानून, 2000 के उस प्रावधान को असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया है जिसके तहत भारतीय दंड संहिता के दायरे में आने वाले अपराधों के लिए किशोर अपराधी पर फौजदारी मामलों की अदालत में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।
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इसके लिए इंडियन पैनेल कोड (भारतीय कानून संहिता) की धारा 228 ए में यह प्रावधान किया गया है, जिसमें निर्देश दिया गया है कि अगर किसी पत्रकार ने यौन उत्पीड़न के शिकार या किशोर अपराधी की सहमति के बिना या उसके कानूनी अभिभावक की सहमति के बिना उसका नाम प्रकाशित करता है तो पत्रकार को कारावास की सजा का प्रावधान है।
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वर्तमान मामले में किशोर अपराधी तथा उसके पिता, भाई व चाचा के विरूद्ध गम्भीर अपराध का आरोप है और यदि इस बाल किशोर को जमानत पर रिहा किया जाता है तो इस बात की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि उसका सम्पर्क अपराधिक तत्वों से हो सकता है और इससे किशोर को नैतिक, शारीरिक, मनो वैज्ञानिक क्षति पहुंचने की आशंका है और यह भी स्पष्ट है कि यदि किशोर को अवमुक्त किया जाता है तो यह न्याय के हितों के प्रतिकूल होगा।