कुपथ्य करने के लिए अक्सर माँग किया करते हैं, पर चतुर परिचारक उसकी माँग को पूरा नहीं करते, क्योंकि वे देखते हैं कि इसमें रोगी के प्राणों को खतरा है।
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सामान्य खाने और पथ्य कुपथ्य में जैसे अंतर होता है वैसे ही उस तरह का लेखन जो कि लिखने वाले को स्वस्थ करे, उस वाले से अलग होता है जो जनरंजन करता है।
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सुख-दु: ख, शोक, हर्ष, भय, प्रेम-वियोग-इन सबको जान लेने से कुछ कम किए जा सकते हैं किन्तु विषय रूपी कुपथ्य पाकर फिर अंकुरित हो जाते हैं।
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सन्त । मंत्री । और वैध कृमशः शिष्य (या साधक) राजा और रोगी को उसके मन को अच्छा लगने के कारण कुपथ्य (गलत सलाह) की सलाह देते हैं ।
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एक ओर कि सीधे पेड को तोडकर हरसिंगार संस्कृत नाम-परिजातक के पत्ते खाने के बजाय आप परिजातक वटी खाइये-आयुर्वेद में पश्य, कुपथ्य का विचार बहुत होता है, सब है।
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सामान्य खाने और पथ्य कुपथ्य में जैसे अंतर होता है वैसे ही उस तरह का लेखन जो कि लिखने वाले को स्वस्थ करे, उस वाले से अलग होता है जो जनरंजन करता है।
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चाहता तो यही था कि कम से कम समय में और बिना विशेष तकलीफ़ के तुमको स्वस्थ बना दिया जाय, किन्तु बीमारी के लक्षण कहते हैं कि तुम कुपथ्य खान-पान के आदी हो गये हो.
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चाहता तो यही था कि कम से कम समय में और बिना विशेष तकलीफ़ के तुमको स्वस्थ बना दिया जाय, किन्तु बीमारी के लक्षण कहते हैं कि तुम कुपथ्य खान-पान के आदी हो गये हो.
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औषधि खाओ और कुपथ्य करते जाओ तो लाभ कैसे होगा? भगवान का ध्यान चिन्तन कथन करना तो औषधि सेवन है और अनाचार, पापाचार, दुराचार आदि अविहिताचरण और विषयभोग की इच्छा इस मार्ग का कुपथ्य है।
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औषधि खाओ और कुपथ्य करते जाओ तो लाभ कैसे होगा? भगवान का ध्यान चिन्तन कथन करना तो औषधि सेवन है और अनाचार, पापाचार, दुराचार आदि अविहिताचरण और विषयभोग की इच्छा इस मार्ग का कुपथ्य है।