एक राज्य का मुख्यमंत्री को एक बड़े सम्वैधानिक पद पर आसीन है तो क्या वो सरकारी कार्यक्रम मे अपना फोटो नही छपवा सकता? फिर सोनिया गाँधी जो किसी भी पद पर नही है उनका फोटो जब केन्द्र सरकार अपने हर विज्ञापन मे छपवाती है तब नीच मीडिया खासकर एनडीटीवी अपनी छाती क्यों नही कूटता?
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फिल्म में छोटी बहू कहती है...मेरी बाकी औरतों से तुलना मत करो...मैंने वो किया है जो किसी और ने नहीं किया...कल तेज बरसती बरसात में भीगते हुए मैं आइसक्रीम खा रही थी...बारिश इतनी तेज थी कि चेहरे पर थपेड़े से महसूस हो रहे थे...सर से पैर तक भीगी हुयी...एक हाथ में फ्लोटर्स...एक हाथ में आइसक्रीम...और मन में अनगिनत ख्यालों का शोर...नगाडों की तरह धम-धम कूटता हुआ.
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कहेते हे बारह साल बीत गये, वो सन्यासी चोके के पीछे, अँधेरे गृह में चावल कूटता रहा, पाँच सो सन्यासी थे सुबह से उठता चावल कूटता रहता, रोज सुबह से उठता, चावल कूटता रहता रात थक जाता सो जाता बारह साल बीत गये वो कभी गुरु के पास दुबारा नहीं गया क्योकि जब गुरु ने कह दिया बात ख़तम हो गयी जब जरुरत होगी वो आ जाये गे भरोसा कर लिया
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कहेते हे बारह साल बीत गये, वो सन्यासी चोके के पीछे, अँधेरे गृह में चावल कूटता रहा, पाँच सो सन्यासी थे सुबह से उठता चावल कूटता रहता, रोज सुबह से उठता, चावल कूटता रहता रात थक जाता सो जाता बारह साल बीत गये वो कभी गुरु के पास दुबारा नहीं गया क्योकि जब गुरु ने कह दिया बात ख़तम हो गयी जब जरुरत होगी वो आ जाये गे भरोसा कर लिया
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कहेते हे बारह साल बीत गये, वो सन्यासी चोके के पीछे, अँधेरे गृह में चावल कूटता रहा, पाँच सो सन्यासी थे सुबह से उठता चावल कूटता रहता, रोज सुबह से उठता, चावल कूटता रहता रात थक जाता सो जाता बारह साल बीत गये वो कभी गुरु के पास दुबारा नहीं गया क्योकि जब गुरु ने कह दिया बात ख़तम हो गयी जब जरुरत होगी वो आ जाये गे भरोसा कर लिया
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मजबूरियाँ ही है एक को एक से मिलाती हैं मजबूरियाँ ही है, एक को एक दूसरे से दूर ले जाती हैं समझ नहीं आता मजबूरियाँ ये कहाँ से आती हैं हर किसी को स्वयं में उलझाए इतनी ऊर्जा वह और कहाँ से पाती है संतो के गलियारों से बधिक के हथियारों से गुजरती हुई टकराती है ये मजबूरिया लोहार के औजारो से कूटता है वह आग से तपाकर ठोक ठोक कर झुका झुका कर एक नया रूप देता है लोहे को वह पसीना अपना बहाकर ख़त्म नहीं होती मजबूरियां समझता है वह किस्मत की दूरिया