जो अपने बल के दर्प में यह बात कहते हैं कि इस बहु-विस्तृत कृशता में संसार की अशांति आ कर घर नहीं बना सकती, कहना चाहिए कि वे अपनी मूर्खता के अंधकार में भटक रहे हैं।
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इतने में उसकी आधी चूड़ियाँ विरह-कृशता से ढीली होने के कारण पृथ्वी पर गिर गई और प्रिय को देखने से जो हर्ष हुआ, उसके कारण कृशता जाती रही और आधी चूड़ियाँ कड़ी होकर तड़-तड़ टूट गईं।
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जैसे व्यायामशाला में जाने से देह का अतिरिक्त मेद छंट जाता है और काया की कृशता जाती रहती है, उसी प्रकार कविता में छंद होने से अतिरिक्त शब्द और विस्तार के अभाव से मुक्ति होती है.
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यकृत में वसा कोशिकाओं के अनाधिकार विस्तार (फैटीइन्फिल्ट्रेशन) से होने वाले कुपोषण, बुढ़ापे की कमजोरी, मांसपेशियों की कमजोरी व थकान, रोगों के बाद की कृशता आदि में असगंध मूल चूर्ण आतिशा घृत या पाक निर्धारित मात्रा में सेवन कराते हैं ।
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उपयोग: अपने गुणों के कारण यह शारीरिक दुर्बलता, यौन शक्ति की कमी, प्रमेह, शुक्रमेह, रक्तपित्त, प्रदर, व्रण, मूत्रातिसार, सोजाक, उपदंश, हृदय दौर्बल्य, कृशता (दुबलापन), वात प्रकोप के कारण गृध्रसी, सिर दर्द, अर्दित, अर्धांग आदि वात विकारों को दूर करने के लिए उपयोगी सिद्ध होती है।
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मेद के क्षीण होने से प्लीहा अर्थात् तिल्ली का बढ़ना, कमर में स्वाप अर्थात् सुप्तता अथवा शून्यता, सन्धि में शून्यता, शरीर में रुक्षता, कृशता, थकावट, शोष, गाढ़े मांस के खाने की इच्छा और उपयुक्त क्षीण मांस के कहे हुए लक्षण होते हैं ।।
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जिसकी पतली जलधारा वेणी बनी हुई हैं, और तट के वृक्षों से झड़े हुए पुराने पत् तों से जो पीली पड़ी हुई है, अपनी विरह दशा से भी जो प्रवास में गए तुम् हारे सौभाग् य को प्रकट करती है, हे सुभग, उस निर्विन् ध् या की कृशता जिस उपाय से दूर हो वैसा अवश् य करना।