लेकिनअरबों-खरबों रुपयों की पूँजी लगाने वाली ये कंपनियाँ निम्नस्तरीय भूमि कोनहीं स्वीकार करतीं, इसलिए सरकार किसानों की उपजाऊ ज़मीनों को अपनेविशेषाधिकर से जबरन अधिग्रहीत कर औने-पौने दाम में इन कंपनियों के चरणोंमें सौंपने लगी है,तो कृषि-क्षेत्र संकट में क्यों नहीं आयेगा?
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कृषि-क्षेत्र, वह क्षेत्र जिस पर बहुसंख्यक आम जनता निर्भर है,संकट मेंहै.केंद्र और राज्य सरकारें कृषि की उन्नति और किसानों के हित के प्रति उदसीन है.हर फैसले में किसानों,खेतिहर-मज़दूरों और कृषि-आश्रितों के हितको हाशिए पर रखा जा रहा है.ऐसा क्यों है?
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इस अधिनियम ने काफी हद तक किसानों कोविस्थापन के लिए मज़बूर किया है और कृषि-क्षेत्र संकटों में आ घिराहै. कृषि को हाशिए पर रख उद्योगों को उन्नत करना कैसा अर्थशास्त्र है?समझमें नहीं आता.वह भी ऐसे उद्योगों को उन्नत करना जिससे मुट्ठी भरपूँजीपतियों को लाभ हो...
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परन्तु जब किसानों को मुफ्त में ही पैसा और अनाज मिल रहा है तो फिर खेती कोई क्यों करेगा और फिर कृषि-क्षेत्र में सुशां बाबू की इन्द्रधनुषी क्रांति का क्या होगा? मित्रों, अभी-अभी १ ८ दिसंबर को सचिवालय सहायक की परीक्षा कथित सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई है.