सबला बन जाना चाहती हूँ तोड दिवारों से रिश्ता अपनी पहचान बनाना चाहती हूँ पँख बना कर ओडनी को आकाश में उड जाना चाहती हूं निकल बन्द सिपी से बाहर कुछ कर दिखाना चाहती हूँ पाना चाहती हूं अपना आस्तित्व अपनी पहचान बनाना चाहती हूं पढ लिख कर मन्जिल पाऊं स्वावलँबी बन जाना चाह्ती हूँ न जीऊँ किसी के रहम पर खुद सपने सजाना चाहती हूँ पुरुष की नियत नारी की नियती ये भ्रम मिटाना चाहती हूँ मैं इक अबला नारी बस सबला बन जाना चाहती हूँ