आँख थी आँखों के इतने पास, कि उस दूर से कुछ भी नज़र तेरे सिवा आता नहीं था | आरिजों में एक जुंबिश थी तुम्हारे, प्यास हो बरसों की जैसे कोई, जिसको होंठ मेरे नर्मियों से पी रहे थे ; आँख थी यूँ बंद गोया सारी रानाई को खुद में कैद रखना चाहती हो ; होंठ पाकर होंठ का एहसास, जैसे बात करना भूल बैठे ;...
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आसाराम पर भारतीय दंड संहिता की धारा-376 (बलात्कार), धारा-342 (जबरन कैद रखना), धारा-506 (आपराधिक धमकी) और धारा-509 (किसी महिला की लज्जा का अपमान करने के उद्देश्य से इस्तेमाल शब्द, भंगिमा या कृत्य), बाल यौन अपराध रोकथाम कानून (पोस्को) की धारा-8 और किशोर न्याय कानून की धारा-23 और 26 लगायी गयी है।
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एक दिन यूँ ही बेटी की किताब खोली तो बीच पन्नों के मिली चिपकी हुई एक तितली न जाने क्यों उस दिन मन बहुत उदास रहा बेटी समझ गई मेरी उदासी का कारण “ बुरी बात है किसी को मारकर यों कैद रखना ” यादों की बात और है हालांकि वे भी मरी हुई तितलियों की तरह चिपकी रहतीं हैं सदां मन की किताब के पन्नों के बीच पर एक अंतर है:
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बाबा रामदेव ने स्त्री वस्त्र धारण कर यह बताने की कोशिश की है कि समाज में स्त्री-पुरुष को लेकर जो भेद हैं उन्हें अब ख़त्म करने का समय आ गया है | आज स्त्रियाँ समाज के हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चल रही हैं | कहीं कहीं तो यह चाल घुड-दौड़ में भी परिवर्तित हो रही है | तब स्त्री को सामजिक वर्जनाओं में कैद रखना कहाँ की समझदारी है?