| 31. | क्रियमाण, संचित व प्रारब्ध तीन प्रकार के कर्म बताए गए हैं।
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| 32. | वर्तमान समय में किए जाने वाला कर्म ही क्रियमाण कर्म हैं ।
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| 33. | कर्मों के तीन प्रारूप संचित, प्रारब्ध और क्रियमाण का कर्म चक्र जाल है.
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| 34. | क्रियमाण अर्थात जो कर्म किए जा रहे हैं या किए जाने हैं।
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| 35. | सञ्चित, प्रारब्ध और क्रियमाण-यह कर्मं के तीन विभाग हैं।
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| 36. | संचित, क्रियमाण आदि कर्मों के रूप में इनकी व्याख्या होती है।
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| 37. | वास्तव में यह भी एक प्रकार का ' क्रियमाण ' ही है।
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| 38. | शुभ अथवा अशुभ प्रत्येक क्रियमाण कर्मका एक तो फल-अंश बनता है और एक
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| 39. | यानी जन्म देने के पश्चात् क्रियमाण में किसी प्रकार का ईश्वरीय हस्तक्षेप नहीं।
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| 40. | संचित और क्रियमाण कर्म तो नष्ट हो जायेंगे पर प्रारब्ध नष्ट नहीं होगा।
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