और जो क्रियाहीन हो जाते हैं. साइक्लौप्स में विद्यमान प्रोसर्कोएड जब मछली द्वारा ग्रहण किए जाते हैं तबये प्रोसर्कोएड लार्वे मछली की आंत में स्वतन्त्र हो जाते हैं तथा इसकी दीवारको भेद कर मछली की मांसपेशियों में पहुंच जाते हैं.
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गोविन्दाचार्य की अधिक मह्त्वपूर्ण बात यह रही कि आने वाली पीढी के सुखद भविष्य को सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार कुछ न कुछ अवश्य करे और क्रियाहीन होकर हारकर न बैठे।
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गोविन्दाचार्य की अधिक मह्त्वपूर्ण बात यह रही कि आने वाली पीढी के सुखद भविष्य को सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार कुछ न कुछ अवश्य करे और क्रियाहीन होकर हारकर न बैठे।
34.
मैं आपका दास हुं यह समझकर कृपा पूर्वक क्षमा करो | मैं आपका आवाह्न करना नहीं जानता विसर्जन करना नहीं जानता पूजा करने का ढंग नहीं जानता, है प्रभु मुझे क्षमा करो मंत्रहिन् क्रियाहीन तथा भक्तिहिन् जो पूजन [...]
35.
दोस्रो ओर, क्रिया-की-हानि उत्परिवर्तन का, गाँठको शमन गराउन वाला जीनको दुवै प्रतिलिपियहरूमा हुनु आवश्यक हो ताकि जीनको पूरी जस्तै/तरिका देखि क्रियाहीन बनाया जा सके.हुनत, यस्तो/यस्ता/यसरी मामला हुन् जसमा गाँठको शमन गराउन वाला जीन को एक उत्परिवर्तित प्रतिलिपि अन्य जंगली-प्रकार प्रतिलिपिको क्रियाहीन बनयोदेती छ।
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दोस्रो ओर, क्रिया-की-हानि उत्परिवर्तन का, गाँठको शमन गराउन वाला जीनको दुवै प्रतिलिपियहरूमा हुनु आवश्यक हो ताकि जीनको पूरी जस्तै/तरिका देखि क्रियाहीन बनाया जा सके.हुनत, यस्तो/यस्ता/यसरी मामला हुन् जसमा गाँठको शमन गराउन वाला जीन को एक उत्परिवर्तित प्रतिलिपि अन्य जंगली-प्रकार प्रतिलिपिको क्रियाहीन बनयोदेती छ।
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ऐसा क्या हो जाता है, जो शरीर वर्षों से घूमता-फिरता, खाता-पीता, सम्माननीय तथा क्रियाशील होता है, क्षण भर में क्रियाहीन, निर्जीव व अछूत हो जाता है और उसे अपने से दूर करके मुखाग्नि देने के लिये ले जाते हैं।
38.
क्षमा करो॥2॥ देवि! सुरेश्वरि! मैंने जो मन्त्रहीन, क्रियाहीन और भक्तिहीन पूजन किया है, वह सब आपकी कृपा से पूर्ण हो॥3॥ सैकडों अपराध करके भी जो तुम्हारी शरण में जा जगदम्ब कहकर पुकारता है, उसे वह गति प्राप्त होती है, जो ब्रह्मादि देवताओं के लिये भी सुलभ नहीं है॥4॥ जगदम्बिके! मैं अपराधी हूँ, किंतु तुम्हारी शरण में आया हूँ।
39.
जो मनुष्य नास्तिक, क्रियाहीन, गुरु और शास्त्र की आज्ञा का उल्लंघन करने वाले, धर्म को न जानने वाले, दुराचारी, शीलहीन, धर्म की मर्यादा को भंग करने वाले तथा दूसरे वर्ण की स्त्रियों से संपर्क रखने वाले हैं, वे इस लोक में अल्पायु होते हैं और मरने के बाद नरक में पड़ते हैं।
40.
सुनी-सुनाई इतनी बात का पता अवश्य है कि उस समय के लगभग सन्ध्या हो चुकी थी, पक्षी चिल्ला-चिल्लाकर घोंसलों में सिमटकर किसी समाधिस्थ जिज्ञासा में, किसी क्रियाहीन विस्मय में, चुप हो गये थे, और उन खंडहरों पर परदा देने वाले चौकीदारों ने, कोई बेसुरा-सा राग अलापते हुए, इधर-उधर घूमना आरम्भ कर दिया था....