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क्रोधपूर्वक उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
31.जब रावण ने उन पर शूल नामक महाभयंकर शक् ति छोड़ी जिसने उने सभी बाणों को जलाकर राख कर दिया तो राम ने क्रोधपूर्वक इन्द्र द्वारा दी हुई शक् ति छोड़कर उस शूल को नष्ट कर दिया।

32.परन्तु दूसरे के द्वारा जब न्याय होता है, तब यदि अपराध से अधिक दण्ड मिल गया, तो क्रोधपूर्वक आदमी बुराई करने लगता है और अपराध से कम दण्ड मिले, तो वह लोभपूर्वक बुराई करने लगता है।

33.तेजिन्दर होठों और आँखों में मुस्कराता उससे बोला, “आने वाली मीटिंग में भी तू यही कहेगा।” “माँ की…स्साली आने वाली मीटिंग की…धत्…” क्रोधपूर्वक खड़े होकर राजेश ने अपनी कुर्सी पीछे को फेंक दी और तेजी के साथ कमरे से बाहर निकल गया।

34.यह सोचकर वह अपने पिता से बोला कि हे प्यारे पिताजी! आप मुझे किसको देंगे? (उत्तर न मिलने पर उसने वही बात,) दुबारा-तिबारा कही तब पिता ने उससे क्रोधपूर्वक कहा कि तुझे मैं मृत्यु को देता हूं।।

35. ' तेजिंदर होठों और आँखों में मुस्कराता उससे बोला, ' आनेवाली मीटिंग में भी तू यही कहेगा। ' ' माँ की... स्साली आनेवाली मीटिंग की... धत्... ' क्रोधपूर्वक खड़े हो कर राजेश ने अपनी कुर्सी पीछे को फेंक दी और तेजी के साथ कमरे से बाहर निकल गया।

36.हालांकि, डेविड पॉट्स का तर्क है कि “पिछले तीस वर्षों में…इस काल के इतिहासकारों ने या तो उस आंकड़े (चरम वर्ष सन 1932 में 29%) को किसी भी आलोचना के बिना स्वीकार किया है, जिसमें ‘एक तिहाई' बढ़ा दिया जाना शामिल है, या फिर उन्होंने क्रोधपूर्वक यह तर्क दिया है कि एक तिहाई बहुत कम है.”

37. [195] हालांकि, डेविड पॉट्स का तर्क है कि “पिछले तीस वर्षों में…इस काल के इतिहासकारों ने या तो उस आंकड़े (चरम वर्ष सन 1932 में 29%) को किसी भी आलोचना के बिना स्वीकार किया है, जिसमें ‘एक तिहाई' बढ़ा दिया जाना शामिल है, या फिर उन्होंने क्रोधपूर्वक यह तर्क दिया है कि एक तिहाई बहुत कम है।

38. [195] हालांकि, डेविड पॉट्स का तर्क है कि “पिछले तीस वर्षों में…इस काल के इतिहासकारों ने या तो उस आंकड़े (चरम वर्ष सन 1932 में 29%) को किसी भी आलोचना के बिना स्वीकार किया है, जिसमें ‘एक तिहाई' बढ़ा दिया जाना शामिल है, या फिर उन्होंने क्रोधपूर्वक यह तर्क दिया है कि एक तिहाई बहुत कम है.”

39. ' ' मूर्तिकार ने धैर्यपूर्वक कहा, “ मुझे मृत्युदंड स्वीकार है, किन्तु तुम्हें क्यों स्वीकार नहीं है कि मैं पहले जैसे एक सुदंर देवी तुम्हें देकर जाऊँ यदि तुम्हारी इस देवी में प्राण होते तो यह कैसे एक पागल के हाथों खंडित हो जाती? ” धर्माधिकारी ने क्रोधपूर्वक कहा, ‘‘ यह निर्लज्ज और ढ़ोंगी सचमुच मृत्युदंड के योग्य है।

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