उन्हें ऐसा करते देख क्रोधोन्मत्त होकर राक्षस भीम ने अपनी तलवार से उस पार्थिव शिवलिंग पर प्रहार किया किन्तु उसकी तलवार का स्पर्श उस लिंग से हो भी नहीं पाया कि उसके भीतर से साक्षात भूतभावन शंकर जी वहां प्रकट हो गए।
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हाथ में छड़ी है ही, मैं भी वह क्रोधोन्मत्त आकृति देखकर पछताने लगती हूँ, कि कहाँ से इनसे शिकायत की? आप लड़के के पास जाते हैं, मगर छड़ी जमाने के बदले आहिस्ते से उसके कंधों पर हाथ रखकर बनावटी क्रोध से कहते हैं-तुम कहाँ गये थे जी? मना किया जाता है, मानते नहीं हो।
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ऐसा भयंकर काला नाग, जिसकी आँखें लाल मणि-सी चमक रही हों, समूचा शरीर कोकिल के कण्ठ की भाँति गहरा नीला-काला, डरावना हो, जो क्रोधोन्मत्त होकर ऊँचा फन किये फुँकारता आ रहा हो, परन्तु आपका भक्त, जिसके हृदय में नाम-स्मरणरूपी नागदमनी जड़ी विद्यमान है उस क्रुद्ध नाग को भी निःशंक निर्भय होकर पुष्पमाला की भाँति लाँघ जाता है, अर्थात् आपका भक्त सदा सर्प-भय से मुक्त रहता है।
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हे प्रभो! ऐसा भयंकर काला नाग, जिसकी आँखें लाल मणि-सी चमक रही हों, समूचा शरीर कोकिल के कण्ठ की भाँति गहरा नीला-काला, डरावना हो, जो क्रोधोन्मत्त होकर ऊँचा फन किये फुँकारता आ रहा हो, परन्तु आपका भक्त, जिसके हृदय में नाम-स्मरणरूपी नागदमनी जड़ी विद्यमान है उस क्रुद्ध नाग को भी निःशंक निर्भय होकर पुष्पमाला की भाँति लाँघ जाता है, अर्थात् आपका भक्त सदा सर्प-भय से मुक्त रहता है।
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‘‘ मैं और तुम ' नामक कविता में गांधी जी को ध्यान में रख करू वे कहते हैं-कई बार जब क्रोध उमड़ता है मैं पागल हो जाता हूँ और फेंक कर हाथ फाड़ कर गला चीखता चिल्लाता हूँ ऐसा लगता है कि काट कर धर दूं शत्रुगणों को अपने और सांग कर डालूं पल में युगों युगों तक देखे सपने किन्तु तभी स्वर शान्त तुम्हारा मुझे सुनाई पड़ जाता है क्रोधोन्मत्त शीश लज्जा से गड़ जाता है।