आतंकवादी घटना जिस पर क्रोध आना चाहिये और जिसकी कड़े-से-कड़े शब्दों में तीव्र भर्त्सना होनी चाहिये उसके संदर्भ में आपको विप्रलम्भ श्रंगार की भावुकता से भरी ठुमरी का मुखड़ा याद आ रहा है यह देख कर कुछ अज़ीब सा लगा.
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पुरुष के लिये यह लहसन अधिक कामुकता को और दुर्भाग्य को देने वाला होता है, वह हमेशा किसी न किसी नकारात्मक विचार में ही ग्रसित रहता है, सकारत्मक विचारों के आते ही उसे क्रोध आना शुरु हो जाता है।
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इस सत्य घटना मे नंदू के उपर क्रोध आना लाजिमी है पर उसने केवल एक महिला के बदला लेने की चाहत को अपने फ़ायदे के लिये इस्तेमाल किया और वह महिला भी इसका अंजाम जानती थी और नंदू बेहद गरीब था ।
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स्कूल के दिनों में डांट पड़ना एक आम बात है लेकिन जब आपका बॉस अन्य सहकर्मियों के सामने आपको डांटता है या फिर काम का बहाना बनाकर आपकी छुट्टी कैंसल कर देता है तो ऐसे बॉस पर क्रोध आना लाजमी भी है.
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बात-बात पर क्रोध आना, उत्तेजित होना तथा इस लक्षण के साथ ही रोगी के शरीर पर फोड़े या फुंसियां हो, बुखार हो गया हो या खांसी हो गई हो या अन्य कोई बीमारी हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।
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नस से जुड़े जितने भी मुहावरे हैं, वे सभी रग में समा गए हैं जैसे रग फड़कना यानी आवेग का संचार होना, रग दबना यानी किसी के वश में या प्रभाव में आना, रग चढ़ना यानी क्रोध आना, रग रग पहचानना यानी मूल चरित्र का भेद खुल जाना अथवा रग-पट्ठे पढ़ना यानी किसी चीज़ को बारीके से समझ लेना आदि ।
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सबसे बड़ी बात जो आलोचक को ध्यान में रखनी चाहिए, वह यह कि उसे गलती पर क्रोध आना चाहिए, गलती करने वाले पर नहीं! गलत बात का विरोध होना चाहिए, व्यक्ति या विशिष्ट संघ का नहीं! अज्ञान का विरोध होना चाहिए, अज्ञानी का नहीं!.... स्वस्थ आलोचक गलत कृत्यों से द्वेष रखता है, कर्ता से नहीं! कर्ता का कृत्य परिवर्तनीय होता है और वह हमारे या उसके क्रियमाण से बदला जा सकता है!