भोपाल गैस काण्ड की कसूरवार लाल एवरेडी बनाने वाली यूनियन कारबाइड (अब कम्पनी डाओ केमिकल ने खरीद ली है) के तत्कालीन अध्यक्ष एण्डरसन के प्रत्यर्पण और कम्पनी पर क्षति-पूर्ति के दावे के लिए भोपाल की गैस पीडित महिलाओं ने इसी कानून के तहत अमेरिका में भी एक दावा पेश किया हुआ है ।
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भोपाल गैस काण्ड की कसूरवार लाल एवरेडी बनाने वाली यूनियन कारबाइड (अब कम्पनी डाओ केमिकल ने खरीद ली है) के तत्कालीन अध्यक्ष एण्डरसन के प्रत्यर्पण और कम्पनी पर क्षति-पूर्ति के दावे के लिए भोपाल की गैस पीडित महिलाओं ने इसी कानून के तहत अमेरिका में भी एक दावा पेश किया हुआ है ।
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भोपाल गैस काण्ड की कसूरवार लाल एवरेडी बनाने वाली यूनियन कारबाइड (अब कम्पनी डाओ केमिकल ने खरीद ली है) के तत्कालीन अध्यक्ष एण्डरसन के प्रत्यर्पण और कम्पनी पर क्षति-पूर्ति के दावे के लिए भोपाल की गैस पीडित महिलाओं ने इसी कानून के तहत अमेरिका में भी एक दावा पेश किया हुआ है ।
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सुभाष तथा हिटलर के प्रति वफादारी तथा वतन की आज़ादी के ख्यालों से सराबोर, ये रण बाँकुरे वीर जवान, अपने रैंक (पद), अपनी पेंशन या अपनी तनख्वाह या अन्य सुख सुविधाओं की (सरकार की और से दी जाने वाली क्षति-पूर्ति आदि) को ठोकर मारकर वतन परस्ती के वशीभूत होकर, आज़ादी के आन्दोलन में कूद पड़े!
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अब जब कि आन्दोलन पूर्णतः बिखर चुका है तो ये अवसरवादी क्षति-पूर्ति के तौर पर यूनियन नेतृत्व को दिल्ली से लेकर कोलकाता तक के विश्वविद्यालयों में व्याख्यान यात्राएँ करा रहे हैं! ज़ाहिर है जे. एन. यू. से लेकर कोलकाता तक यूनियन के नेतृत्व के लोगों की ऐसी व्याख्यान यात्राओं से कुछ हासिल नहीं होने वाला है।
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उन्हें इसकी क्षति-पूर्ति कौन देगा और कौन इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेगा? गाड़ी के इंतज़ार में स्टेशन पर सपरिवार बैठे-बैठे या फिर प्लेटफार्म पर इस कोने से उस कोने तक फालतू चहल-कदमी करते मुसाफिरों को आठ-आठ घंटे तक बोरियत भरा जो मानसिक तनाव हुआ, मनो-चिकित्सकों की मानें तो उसका असर भी सेहत पर किसी न किसी रूप में ज़रूर हुआ होगा.
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सुभाष तथा हिटलर के प्रति वफादारी तथा वतन की आज़ादी के ख्यालों से सराबोर, ये रण बाँकुरे वीर जवान, अपने रैंक (पद), अपनी पेंशन या अपनी तनख्वाह या अन्य सुख सुविधाओं की (सरकार की और से दी जाने वाली क्षति-पूर्ति आदि) को ठोकर मारकर वतन परस्ती के वशीभूत होकर, आज़ादी के आन्दोलन में कूद पड़े! इनके कष्ट, इनकी व्यथा तो कलम के वर्णन से बाहर
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जन्म-दिन के दिन सुबह से ही आदमी इस अंदाज़ में पेश आने लगता है, जैसे इस ग्रह पर जन्म लेकर उसने बोझ बढ़ाने की बजाय कोई बड़ा भारी अहसान कर दिया हो और अब लोगों को चाहिए कि वे उसे तोहफे देकर उस अहसान की क्षति-पूर्ति करें. आज अपने जन्म-दिन पर सबसे पहले हमने बिस्तर पर ही कुछ इस किस्म की जम्हाई ली, जैसे मिलट्री में काम ना आने वाले किसी आराम-पसंद घोड़े से कहा जा रहा हो कि अब उठकर मॉर्निंग वाक के लिए चलो.
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कुछ लाख रुपए की क्षति-पूर्ति मानव अधिकार के झन्डाबरदार इसे दिला भी देंगे तो क्या वह वास्तव में उसने जो खोया है और जो उसने भोगा है इससे उसकी पुर्ति हो सकेगी? जिन ¶ ोगों ने उसके अधिकारों का अपहरण किया क्या उन्हें दंडित कराया गया? नागरिकों को मि ¶ े नागरिक अधिकार हों या मानव अधिकार हों जब तक इनकी पवित्रता और इनके सम्मान का भय सत्ता को नहीं होगा तब तक इन अधिकारों की बात करना और इनको लागू कराने का प्रवचन देना टाइम-पास करना है।