एक अबाबील के आने से इतनी गर्मी नहीं पड़ने लगती कि सबको खस-खस की टट्टी लगाने का फरमान जारी कर दिया जाए, और न लगाने पर बिरादरीबाहर और द्रोही मान लिया जाए.लगता है गुस्सा अच्छे लिक्खाड़ों की नाक पर धरा रहता है.
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कुछ के संग हमेशा होता है, कुछ के संग कभी-कभार....... उम्मीद है मेरे उत्तरों को इस “खास“ की खस-खस से बचा कर ही पढ़ा जाएगा! 1. पंकज जी की पहली आपत्ती है कि “खास“ अरथों में ब्लॅागिंग क्या है? पंकज जी आप को यह जान कर खुशी होगी कि ब्लॅागिग उस “खास“ मानी में नेटवर्किंग ही है जिस “खास“ मानी में आप इसका प्रयोग करते हैं।
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इस फसल में निकलने वाली अफीम जो सरकार द्वारा ही एक नी: श्चित दार पर खरीदी जाती है जिसमे तो किसान को विशेष फायदा नज़र नहीं आता परन्तु नियत मापदंड के बाद बची अफीम तस्करों द्वारा बहुत ऊँची कीमत पर खरीदी जाती है जिससे किसान की बल्ले-बल्ले हो जाती है....अफीम के बाद इसके बीज जिन्हें पोस्त, खस-खस कहते है अच्छी कीमत पर मंडियों में बिक्री की जाती है..