और यदि पोस्ट को पढ़ने के बाद की गई होंगी तो स्पष्ट है कि टिप्पणी करने वाला या तो गम्भीर पोस्ट लिखने वाले की खिल्ली उड़ाना चाहता है या फिर उसे नीचा दिखा कर उसका कद छोटा कर देना चाहता है।
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किसी की भी खिल्ली उड़ाना और किसी भी विषय पर विचार किये वगैर अपनी बात थोप देना आदि आदि यहाँ.... बखूबी देखने को मिल रही है...अब तो इस मंच से साहित्यकार कवि लेखक भी जुड़ने से डरने लगे है..
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जिस प्रहासक (वरलेस्क) में किसी विशेष कृति या लेखक या बाद की शैली या प्रकृति तथा रीति का विनोदपूर्ण विकृत अनुकरण किया गया हो और जिसका उद्देश्य हँसी उड़ाना या उसे नीचा दिखाना या उसकी खिल्ली उड़ाना हो उसे परिवृत्ति (पैरोडी) कहते हैं।
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जिस प्रहासक (वरलेस्क) में किसी विशेष कृति या लेखक या बाद की शैली या प्रकृति तथा रीति का विनोदपूर्ण विकृत अनुकरण किया गया हो और जिसका उद्देश्य हँसी उड़ाना या उसे नीचा दिखाना या उसकी खिल्ली उड़ाना हो उसे परिवृत्ति (पैरोडी) कहते हैं।
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आज वेंकैया नायडू ने राष्ट्रीय सत्ता-संचालन के लिए कांग्रेस के साथ भाजपा को योग्यतम ठहरा कर पूरी की पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था का अपमान किया है. लगभग छह साल तक छोटे-छोटे करीब दो दर्जन दलों के सहयोग से देश पर शासन कर चुकी भाजपा की तरफ से तीसरे मोर्चे की खिल्ली उड़ाना उचित नहीं.
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1) मिश्रा जी किसी को सबक देना चाहते हैं? 2) मिश्रा जी किसी की खिल्ली उड़ाना चाहते हैं? 3) मिश्रा जी अपरोक्ष रुप से किसी को धमकाना चाहते हैं? 4) कुछ लोग हिन्दी ब्लॉग जगत को अपनी-अपनी खुन्नस उतारने का ठिकाना बनाना चाहते हैं?
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ब्लॉगर्स के बीच शब्दों, व्याकरण अथवा टायपिंग की गलती हो या किसी कविता या लेख को आधार बना कर खिल्ली उड़ाना भी खूब होता रहा, तुरन्त जवाब देना मेरी आदत नहीं, जान बूझ कर इग्नोर करती रही, और जवाब देना भी क्या था, जो गलतियाँ थी लेखन वे वे तो थी / हैं ही....
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इस बात के पीछे कुतर्क सा दिया जा सकता है कि प्रशासन वहां पर भीड़ को नियन्त्रित करने के लिए था, लोगों की सुरक्षा के लिए था किन्तु क्या इस बात से इंकार किया जा सकता है कि वहां उसका उपस्थित होना उस सरकारी आदेश की खिल्ली उड़ाना भी था जिसके आधार पर ऐसी उपाधियों पर रोक लगाई जा चुकी है।
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नोट-मैं ब्याक्तिगत रूप से सभी धर्मो का सम्मान करता हु और करता रहूगा! मैं किसी भी धर्र्म की खिल्ली उड़ाना या कमिया देखना मेरे स्वभाव में नहीं है, पर कुछ तथाकथित नव बौध्ध दिन भर वैदिक सनातन धर्र्म की निदा और बुराई करते रहते है जिससे त्रस्त होकर उनको जबाब के रूप में यह ब्लॉग मेरे नव बौध्दो को समर्पित है!!
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भक्ति आंदोलन के कवियों का ज्ञानियों की खिल्ली उड़ाना, पोथी का उपहास उडाना और काव्य पर जोर देना, बुनियादी तौर पर ये लोग दार्शनिक नहीं बनना चाहते वे कवि बनना चाहते थे, ऐसा नहीं था कि यो भक्तकवि विद्वान नहीं थे, बल्कि सच्चाई यह है कि ये पक्के बुद्धिजीवी थे, लेकिन कविता लिखना चाहते थे दर्शन लिखना नहीं चाहते थे।