क्यों नहीं पैन्ड्युलम जाकर एकबार अन्तिम छोर पर ले जाता और वहीं सदा के लिए अटकाता? परम सुख या परम दुख खौलना या हिम सा जमना क्या नहीं बेहतर है यूँ बस केवल गुनगुने पानी सा बना रहने से? ऐसा पानी ना जिसमें कभी उबाल आए ऐसा पानी ना जिसमें कभी जमाव आए।
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क्या यही है ‘ अनुभूति का शिखर ' परम सुख या परम दुःख खौलना या हिम सा जम जाना कि एक छोर पर जाकर शक्तिहीन सा ठहर जाना उल्टे पाँव वापस हो जाना नीचे की ओर जहाँ कोई ठहराव नहीं है निराशा, दारुण्य, अन्धेरा या मासूम, निश्छ्ल, अबोध बचपन का भाव नहीं है
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और फिर प्रतिकार का सबसे पहला मार्ग जो उसे दीखता है वह उग्रता और हिंसा का ही हुआ करता है...आवेग व्यक्ति में उस सीमा तक धैर्य का स्थान नहीं छोड़ती, कि व्यक्ति सत्याग्रह एवं अहिंसक मार्ग अपना सके और उसपर अडिग रह सके.रक्षक को ही भक्षक बने देख स्वाभाविक ही किसी भी संवेदनशील का खून खौलना और आवेश में उसके द्वारा अस्त्र उठा लेना,एक सामान्य बात है...