हम उस समाज के अधुनातन स्पंदनों की, उसके उत्थान और पतन की, उसके अतीत, वर्तमान और भविष्य की मीमांसा करने वाला गद्य लिखना चाहते हैं, जिसका हम ख़ुद एक बहुत छोटा हिस्सा हैं ; और यह मीमांसा भी कविता का सम्पूर्ण कार्यभार नहीं है, एक तात्कालिक दायित्व है।
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नेरुदा: गद् य... मुझे अपनी जि़्ान्दगी में हमेशा पद्य ही लिखने की आवश्यकता महसूस होती रही है-गद्यात्मक अभिव्यक्ति में मन नहीं लगता-गद्य का सहारा मैं किसी खास तरह की उड़ती हुई भावना या घटना को अभिव्यक्त करने के लिए लेता हूं, जिसमें किसी वर्णनात्मकता की गुंजायश हो-सच तो यह है कि मैं गद्य लिखना एकदम छोड़ सकता हूं-बस, कभी-कभार ही लिखता हूं-