जैसे दूसरों को समझाते हैं, खुद को भी समझाते हैं-देख लाल्टू, मसिजीवी के फोटोग्राफ देख (मतलब वो जो ठंड की कहर वाला) और भूल जा कि ग़मी ने तुझ ही से सौदा किया है।
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जैसे दूसरों को समझाते हैं, खुद को भी समझाते हैं-देख लाल्टू, मसिजीवी के फोटोग्राफ देख (मतलब वो जो ठंड की कहर वाला) और भूल जा कि ग़मी ने तुझ ही से सौदा किया है।
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“ अच्छा वो! धत्! मैं आपको क्यों लिखने लगी वैसा पत्र? ” वह चुन्नी दांत से काटने लगी, “ वह तो झरना जी ने आपको दिया था जब वे यहाँ आयी थीं, दादाजी की ग़मी में। ”
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महसूस होती है किसी की कमी धीरे धीरे / उतरती है आँखों में नमी धीरे धीरे /कोई यादों की गहराई में ग़ुम है /आई है याद जो थी थमी धीरे धीरे /तनावों का अजीब नश्तर है /कट रही बर्फ इक जमी धीरे धीरे /मेरी आँखों में देखी क्या कहानी?उदासी से भरी इक ग़मी धीरे
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महसूस होती है किसी की कमी धीरे धीरे / उतरती है आँखों में नमी धीरे धीरे /कोई यादों की गहराई में ग़ुम है /आई है याद जो थी थमी धीरे धीरे /तनावों का अजीब नश्तर है /कट रही बर्फ इक जमी धीरे धीरे /मेरी आँखों में देखी क्या कहानी?उदासी से भरी इक ग़मी धीरे...
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बादलों के आगोश में गुम आज चांदनी धुंधली सी है सबा के आँचल में जब्ज आज थोड़ी नमी सी है कुमुदनी के रुखसारों पे इक बूँद शबनमी सी है शब्-ए-तनहा महफ़िल में छाई जैसे कोई ग़मी सी है रुत की खामोशियों में इक ग़ज़ल की कमी सी है (चित्र गूगल सर्च से साभार)...
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बादलों के आगोश में गुम आज चांदनी धुंधली सी है सबा के आँचल में जब्ज आज थोड़ी नमी सी है कुमुदनी के रुखसारों पे इक बूँद शबनमी सी है शब्-ए-तनहा महफ़िल में छाई जैसे कोई ग़मी सी है रुत की खामोशियों में इक ग़ज़ल की कमी सी है (चित्र गूगल सर्च से साभार)
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काला क्यों है आसमान? समय को किसने गिरा दिया गोली मार कर? समुद्र के ऊपर उड़ता वह एक ख़ाली हाथ था या कोई हैट? शादी की पोशाक के साथ ग़मी का गुलदस्ता क्यों? जंगली रास्तों के बजाय अस्पतालों के गलियारे क्यों? बीता समय क्यों, भविष्य क्यों नहीं? आप ईश्वर में यकीन करती हैं?
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ज़ाकिर हुसैन, फ़क़रूद्दीन अली अहमद, डॉ. शंकरदयाल शर्मा, इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी, जयप्रकाश नारायण, वी. वी. गिरि, ज्ञानी ज़ैलसिंह जैसी राष्ट्रीय हस्तियों के दिवंगत होने पर आकाशवाणी और दूरदशन के ह्र्दयस्पर्शी प्रसारणों से घर-परिवार में भी ऐसा वातावरण बन जाता था जैसे परिवार में ही कोई ग़मी हो गई हो.
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बह जाने दो इन अश्को को, ग़मों को दूर जो करते है ग़मी में ही रहते है जो इन्हें बचने का कसूर करते गमो से भरा दिल रोने से हल्का हो जाता है और ये गम मेरे दोस्त बस कलका हो जाता है खुदा की इनायत हमपे ये हमारे अश्क है पत्थर हो जाते है वो आँखे जो रहती खुश्क है