इन प्रयोगों से प्रेरणा ग्रहण कर हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के एकांकीकारों ने भी रेडियो रूपक, गीतिनाट्य और काव्यरूपक प्रस्तुत किए हैं।
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इसके बावजूद उनके सोलह कविता-संग्रहों, आठ कहानी संग्रहों, पाँच उपन्यासों, निबन्धों, गीतिनाट्य, यात्रावृत्त आदि विधाओं की अनेक पुस्तकें प्रकाशित हैं।
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जिन्होंने इन रचनाओं को नाट्यमंच एवं टी. वी. पर देखा होगा अथवा पत्रिका में पढ़ा होगा, उन्हें इनमें गीतिनाट्य जैसा आनंद आएगा।
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कवयित्री सुभद्राकुमारी चैहान की कविता ‘झांसी की रानी ' की ओजस्वी गीतिनाट्य प्रस्तुति ने भारत के अतीत की गौरवगाथा को मंच पर मानों जीवंत कर दिया।
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उनके सोलह कविता-संग्रह, आठ कहानी संग्रह, पाँच उपन्यास, अनेकानेक निबन्ध, एक सम्पूर्ण गीतिनाट्य, यात्रावृत्त तथा लेखकीय वैविध्य की अनेक पुस्तकें प्रकाशित हैं।
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कथानक नवीन नहीं हुआ करते थे-बहुघा पुराने पौराणिक आख्यान या नाटक को ही फिर से गीतिनाट्य का रूप देकर अथवा केवल संशोधन करके ही उपस्थित कर देते थे।
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चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, स्कंदगुप्त, जनमेजय का नागयज्ञ, एक घूँट, विशाख, अजातशत्रु, राजश्री, करुणालय (गीतिनाट्य) आदि उनके प्रसिद्ध और कालजयी नाटक हैं.
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कृष्णलीला की गीतिनाट्य प्रस्तुति में कृष्ण की माखनचोरी, यमुना किनारे गेंद खेलना और कालियनाग के मानमर्दन के उपरांत कृष्ण के महारास की भावविभोर प्रस्तुति ने सभी उपस्थित जनमानस को भक्ति सरिता में भक्तिरस से रस सिक्त कर दिया।
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इसके अतिरिक्त गीतिनाट्य, उपन्यास, नाटक, संस्मरण,आलोचना ललित निबंध आदि उनकी अन्य अभिव्यक्ति की विधायें रही हैं हंसबलाका(संस्मरण)-कालिदास(उपन्यास)-अनकहा निराला(आलोचना) उनकी विख्यात गद्य पुस्तकें हैं-जिनके माध्यम से शास्त्री जी को जाना जाता है और आगे भी जाना जाता रहेगा।
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भी अपने पत्र में चन्दे का तक़ाजा इसी तरह मनोरंजक ढंग से करते थे-“इस हाथ दे उस हाथ ले”।35 प्राचीन काव्य परम्परा में जिसे समस्यापूर्ति की तरह जाना और समझा जाता रहा, दरअसल वही आधुनिक युग में गीतिनाट्य और संवाद को जन्म देती है।