स्थान-वही, जहाँ की लोकल ट्रेनें धमनी है समय-वही, जब भरी दुपहरीया एक किसान हल-बैल खोल कर आम के पेड के नीचे सुस्ता रहा हो, छहाँ रहा हो......... पास ही एक कुत्ता, नरम-गीली जमीन पर बैठा, आँख बंद किये, बाहर जीभ निकाले हाँफ-हाँफ कर ठंडक ले रहा हो कि तभी कहीं से आवाज आये-आडवाणी को प्रधानमंत्री बनाओ।
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वह घर से बाहर निकल आता है, प्रतिज्ञा करता है उसे कागज पर लिखता है कुछ ऐसा काम नहीं करेगा जिससे माँ को उस पर रत्ती भर भी विष्वास करना पड़े. पर तभी-पर तभी उसके भीतर एक और परिवर्तन हुआ, उसने उस कागज के चिथड़े किये, उन्हें गीली जमीन पर फेंका और पैरों से रौंदने लगा तब तक जब तक कि वे कीच में सनकर अदृष्य नहीं हो गये-