अब समय आ गया है कि संसाधनों पर जनता का अधिकार स्थापित किया जाय तथा ग्राम समुदाय को खनन अधिकार मिले, जिससे कोयले की आपूर्ति भी हो और 97094.75 करोड़ रुपया प्रतिवर्ष ग्राम समुदाय बने, ताकि झारखण्ड का आम व्यक्ति विस्थापित न होकर स्वाभिमान के साथ जिए और समृद्ध हो।
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‘पहला-बाजार निरंतर विकसित और विस्तृत होता रहा, दूसरा-उत्पादन का मूल उद्देश्य उपभोग को विविधतापूर्ण बनाना था न कि मुनाफा कमाना और तीसरा-बाजार सख्ती से ग्राम समुदाय और तत्कालीन प्रशासनिक व्यवस्था के अधीन था, जहां कीमतों, वस्तुओं की गुणवत्ता और मापतौल पर राज्य या समाज की निगाह निरंतर बनी रहती थी।
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उस समय प्रधान / मुखिया / सरपंच को ग्राम भोजक कहा जाता था ग्राम भोजक ग्राम सभा के तय फैसलों का अनुपालन करवाता था वह तालाब, घाट, कुंए, आंतरिक सुरक्षा, न्याय, शिक्षा आदि कार्यों की देख रेख करता था, ग्राम सभा को अधिकार होने से सामूहिक निर्णय लेने से ग्राम समुदाय स्वावलंबी और सुदृढ़ था।
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अगले अध्याय में ' पूंजीवाद के पहले भारत में विनिमय' की विवेचना करते हुए तीन निष्कर्षों पर पहुंचते हैं, 'पहला-बाजार निरंतर विकसित और विस्तृत होता रहा, दूसरा-उत्पादन का मूल उद्देश्य उपभोग को विविधतापूर्ण बनाना था न कि मुनाफा कमाना और तीसरा-बाजार सख्ती से ग्राम समुदाय और तत्कालीन प्रशासनिक व्यवस्था के अधीन था, जहां कीमतों, वस्तुओं की गुणवत्ता और मापतौल पर राज्य या समाज की निगाह निरंतर बनी रहती थी।
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जहां से अनुवांशिक सामग्री ली गई है भारत में उसकी भौगोलिक स् थान के साथ पूर्ण जनकीय लाइन का पासपोर्ट डाटा जहां से किस् म व् युत् पन् न की गई है और ऐसी सभी सूचनाएं जो योगदान से संबंधित है, यदि कोई हो, किसी कृषक, ग्राम समुदाय, संस् था या संगठन का उत् पादन में, किस् म विकसित करने या उत् पन् न करने में किसी प्रकार का योगदान का डाटा ;
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अगले अध्याय में वह ‘ पूंजीवाद के पहले भारत में विनिमय ' की विवेचना करते हुए वह तीन निष्कर्षों पर पहुँचते हैं, “ पहला-बाज़ार निरंतर विकसित और विस्तृत होता रहा, दूसरा-उत्पादन का मूल उद्देश्य उपभोग को विविधतापूर्ण बनाना था न कि मुनाफ़ा कमाना और तीसरा-बाज़ार सख्ती से ग्राम समुदाय और तत्कालीन प्रशासनिक व्यवस्था के अधीन था, जहाँ कीमतों, वस्तुओं की गुणवत्ता और मापतौल पर राज्य या समाज की निगाह निरंतर बनी रहती थी.
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माक्र्स ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ पूंजी में भारत की ग्राम्य व्यवस्था के बारे में लिखाःहिन्दुस्तान के वे छोटे-छोटे तथा अत्यन्त प्राचीन ग्राम समुदाय अर्थात समाज, जिनमें से कुछ आज तक कायम हैं, जमीन पर सामूहिक स्वामित्व, खेती तथा दस्तकारी के मिलाप और एक एैसे श्रम विभाजन पर आधारित हैं जो कभी नहीं बदलता, और जो जब कभी एक नया ग्राम्य समुदाय आरम्भ किया जाता है तो पहले से बनी बनाई और तैयार योजना के रूप में काम आता है।