| 31. | राखत नाहिं कोऊ करुनानिधि, अति बल ग्राह गह्यौ.
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| 32. | कश्यप ने उसे कहा, 'जा, उस मदमस्त हाथी और ग्राह
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| 33. | ग्राह मगर बहु कच्छप छाये, मार्ग कहो कैसे सूझे॥
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| 34. | जैसे गज का ग्राह ते बचायो, मोहिं सिंहन ते लेहु बचाय।।
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| 35. | ऊपर-ऊपर लाल मछलियाँ नीचे ग्राह बसे।
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| 36. | ग्रसित गुरंग ग्राह आरत अथाह परे,
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| 37. | इस पर ग्राह उसे खींचकर पानी में ले जाने लगा।
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| 38. | जैसे गजेन्द्रको ग्राह खींचकर जलमें ले जा रहा था ।
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| 39. | कहाः ” हे ग्राह! तुम
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| 40. | जो गति ग्राह गजेन्द्र की सो गति भई है आय।
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