किन्तु ग्लासनोस्त के कारण स्वतंत्रता का स्वाद चखे जनगण ने उनके प्रयत्नों को पूर्ण विफल कर दिया और तीन दिन बाद ही गोर्बाचोव पुनः राष्ट्रपति के पद पर आसीन किए गए।
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पूंजीवादी, साम्राज्यवादी देशों ने तीसरी दुनिया के आर्थिक शोषण का दुबारा प्रयास तभी आरम्भ किया जब गोर्वाचेव ने ग्लासनोस्त और पेरेस्त्राोइका को सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के सामने पेश किया था।
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गोरबाचोव ने ग्लासनोस्त और पेरेस्त्रोइका के नाम से पूंजीवादी सुधार लागू किये, जिससे आगे चलकर येल्तसिन ने सोवियत राज्य का अंतिम विनाश किया और उसके स्थान पर संपूर्णतया पूंजीवादी लोकतंत्र की स्थापना की।
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1990 के दशक में जब पेरिस्त्रोइका और ग्लासनोस्त की चर्चा शुरू हुई और मिखाइल गोर्बाच्योव सोवियत संघ के राष्ट्रपति बने तो सोवियत संघ ने अपनी पुरानी समाजवादी अवधारणा को छोड़कर आर्थिक खुलेपन की दुनिया में झांकने की कोशिश की।
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जनाब इस तरह कोई भला होता है ब्लॉगिंग का जिस तरह अजय कुमार झा और अविनाश वाचस्पति ने सीधा-सच्चा सोच लिया था...इसके लिए तो क्रांतिकारी ग्लास्नोस्त और पेरेस्त्रोइका की ज़रुरत होती है...अब ये झा या वाचस्पति जैसे प्राणी क्या जानें कि ग्लासनोस्त और पेरेस्त्रोइका क्या होता है...
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अभी दाएं हाथ की अनामिका से निशान भी न छूटा था, दिवारों से पोस्टर भी न फटे थे, नारे भी न मिटे थे, वो अखबारों की सुर्खियां, टीवी का थोड़े से अर्से का ग्लासनोस्त जहन से पूरी तरह हट भी न पाया था कि चुनाव फिर आ गये।
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अभी दाएं हाथ की अनामिका से निशान भी न छूटा था, दिवारों से पोस्टर भी न फटे थे, नारे भी न मिटे थे, वो अखबारों की सुर्खियां, टीवी का थोड़े से अर्से का ग्लासनोस्त जहन से पूरी तरह हट भी न पाया था कि चुनाव फिर आ गये।
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अभी दाएं हाथ की अनामिका से निशान भी न छूटा था, दिवारों से पोस्टर भी न फटे थे, नारे भी न मिटे थे, वो अखबारों की सुर्खियां, टीवी का थोड़े से अर्से का ग्लासनोस्त जहन से पूरी तरह हट भी न पाया था कि चुनाव फिर आ गये।
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उत्तराखण्ड की उम्र के इन बारह बरसों में या इससे पहले के राजनीतिक कालखण्ड की किसी खिड़की से क्या कभी ग्लासनोस्त का कोई झोंका लहराया जिसे हम एक क्षेत्रीय उफान में बदल सकते थे? आज यह सवाल इसलिए भी अहम है कि हम सब यही सोचते रहे कि छोटा सूबा हागा तो स्वस्थ राजनीति होगी।
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लेकिन नब्बे के दशक में अचानक गोर्बाचोव नामक एक जनप्रिय नेता का उदय होता है और वह ‘ ग्लासनोस्त ‘ तथा ‘ पेरोस्त्रोइका ‘ जैसी उदारवादी धारणाओं को नवोन्मेष के नाम पर लागू करता है, जिसके चलते ‘ आधार ‘ (बेस) में परिवर्तन होता है और ‘ अधिरचना ‘ (सुपर स्ट्रक्चर) ढह जाती है।