लंका दहन तो बस बहाना था I भक्ति का महत्व दिखाना था I करवाया जो राम-सुग्रीव मिलन, उस बाली का वध करवाना था I सागर को पार कर जाना था, सिया सुधि उन्हें लाना था I और फिर सोने की लंका को, राख में बदल कर आना था I लक्ष्मण मूर्छित पड़े धरणी पर, मूर्छा से उनको उठाना था I इन्द्रजीत का घमंड करना था चूर, यमलोक का रास्ता दिखाना था I हनुमंत की छाती में दिखे श्री राम, भक्त-भगवान्, रिश्ता समझाना था II