असल बात यही थी या उनका अनहोनी की आशंका से उपजा भय कहना मुश्किल है, लेकिन यह बात उसकी ससुराल वालों के मन में बैठ गयी कि उसे कुछ दिन के लिए घर छोड़ देना चाहिए।
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अपने को एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में देखने के बाद अगर उन पर तोअहामत लगाए जाएँ तो यह मेरा भी कहना होगा कि ऐसे में उनका अपना वह तथाकथित घर छोड़ देना उनके लिए ज़्यादा मायने वाला होगा।
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जिसमें दिमाग़ लगाना पड़ता है वही बात करो ब्रह्मा जी ने देखा कि इनकी सृष्टि तो आपस में झगड़ा कर रही है, तो बोले “बेटा! जिस घर में झगड़ा हो, वह घर छोड़ देना चाहिए।” तो शमशान में बैठ गए और आत्म चिन्तन करने लगे।
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मेंहदी:-बस्ती पहुँचते ही पहली गली छोड़ देंगे, फिर दूसरी गली में दाएँ तरफ मुड़ जाएँगे, फिर दूसरी गली में बाएँ तरफ मुड़ जाएँगे, फिर बाएँ तरफ मुड़ जाएँगे, अंत में एक घर छोड़ देना वही आपका नाना का घर है।
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यह बात अगर दिल-ओ-दिमाग़ से मान ली जाती है के माँ बन्ने का सारा दुःख औरत अकेले उठाती है मर्द नही तो यह बात भी मान लेने में मुश्किल नही होना चाहिए के अकेली औरत का घर से भागना जितनी परेशानियां लाता है उतना मर्द का अपना घर छोड़ देना नही लाता.
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04 नवंबर को टूंडला से मगध एक्स्प्रेस पकड़ने हेतु प्रस्थान करना था, 08 बजे रात्रि तक घर छोड़ देना था उसी के अनुरूप डॉ शोभा और अशोक (बउआ के फूफा जी की बेटी सीता मौसी का बड़ा बेटा)को सूचित किया था ;कामरेड किशन बाबू समेत सभी यथोचित समय से पहुँच गए थे।
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वही कुछ बाते ऐसी है जैसे बर्फी की मदद के लिए श्रुति का घर छोड़ देना, झिलमिल से बर्फी के इतने लगाव की वजह साफ़ ना होना, (और श्रुति से भी) या श्रुती से शुरू में इतना लगाव होने पर भी बाद में उसके लिए कोई भावना ना होना, सवाल पैदा करती हैं।
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… और दरवाज़ों के पीछे दीवारों पर आप द्वारा अपना नाम लिखना, फिर … आपके विवाह के लिए दूजे शहर जाना, नारियल …, सब परिवार वालों का ही घर छोड़ देना, शहर ही छूट जाना … सब कुछ मुझ जैसे भावुक हृदय को रुलाने के लिए पर्याप्त है …
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0 4 नवंबर को टूंडला से मगध एक्स्प्रेस पकड़ने हेतु प्रस्थान करना था, 08 बजे रात्रि तक घर छोड़ देना था उसी के अनुरूप डॉ शोभा और अशोक (बउआ के फूफा जी की बेटी सीता मौसी का बड़ा बेटा) को सूचित किया था ; कामरेड किशन बाबू समेत सभी यथोचित समय से पहुँच गए थे।