उपन्यास भले ही अश्लीलता (पॉर्नो) / घासलेटी साहित्य का लेबल लिए नहीं है मगर एक आम भारतीय पाठक के लिए जो सेक्स को प्रत्यक्षतः एक निषिद्ध कर्म ही समझते हैं, यह उसी कैटिगरी की कृति है।
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यह घासलेटी साहित्य या फ़ॉर्मूला हिंदी फिल्म जैसा नहीं है तो और क्या है जहाँ पाठकों से किसी गंभीर बीमारी के नाम पर करुणा आमंत्रित की जाती है और फिर कभी शहीद होने की आकांक्षा प्रकट की जाती है या फिर अपनी विकलांगता का महिमा मंडन किया जाता है या फिर आपकी इस कविता के सन्दर्भ में कहूँ तो नारीवादी या नारी के यौनमुक्त होने के दावे किये जाते हैं.