मेरी सी बातूनी थी देर रात तक बतलाती थी, कभी मेरे ख्वाबों के रंगो की पेंटिंग बनाती थी, कभी अपने सपनों के घुँघरु बाँध नाचती थी, मैं देखता-सुनता जाता और अच्छा-अच्छा.....
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१. अनोखा-चाँदी या गिलट के बने उमेंठे तारों के लच्छों के बीच-बीच समान अंतर से लगे कुंदों में घुँघरु (बोरा) गँसे रहते हैं, जो बजनिया (बजने वाले) और दिखनौसू (न बजने वाले), दो तरह के होते हैं ।
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उसमें पैर कीर अंगुलियों के बिछिया और अनौट (अनवट, जो बुंदेली में अनौटा हो गया है), पैरों के बाँकों, घुँघरु और जेहर; कटि के छुद्रघंटिका (करधनी), हाथ की अँगुलियों के मुँदरी, हाथ के कौंचा में पौंची, कंकन, वलय और चूड़ी;
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घुंघरू क्या बोलेँ? क्या बोलेँ? क्या बोलेँ? कह दो गोरिया...घुंघरु क्या बोले क्या बोले क्या बोले?लाज लगे, पग रोके,मुझे देख अकेली,पथ रोके,पैन्जनीया, मनवा पग रोके पग रोके, ना शोर मचा, जग जायेगा जग, बढेगी मोरी उलझन, ताको वे बोले, ये बोले, घुँघरु ये बोले!
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आदिम जाति कल्याम विभाग के छतरपुर हॉस्टल में सेवारत कन्नू कोंदर की पत्नी से साक्षात्कार करने पर कोंदरों के परम्परित जेवरों में केवल टोड़र, पैजना, करधौनी, बहुँटा, चंदौली, कँटीला गजरा, मुँदरी, छला, कन्नफूल, पुँगारिया, खँगौंरिया और टकार तथा पुरुषों के घुँघरु आभूषणों के नाम मिले, जो उसने अपनी पिछली पीढ़ी, में प्रचलित देखे थे ।
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‘ सुनीं, देखी, भोगी हैं ये यातनाएँ / ग़ज़ल हैं ये मेरे बराबर उमर की ', ‘ जो कभी था बाप के भी बाप का परिचय / सिर्फ़ उतना सा ही तो है आपका परिचय ', ‘ सिद्ध कर दूँगा कि घुँघरु हूँ मैं अलबेला / मुझसे करवा दीजिए बस थाप का परिचय ' ।
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इस मौके पर अनिल गोयल ने बतौर आत्मकथ्य अपनी ग़ज़ल के ये शे ' र कहे-‘है मन मौज अपनी, है बंदिश बहर की/ कथा है, व्यथा है शहर दर शहर की', … ‘सुनीं, देखी, भोगी हैं ये यातनाएँ/ ग़ज़ल हैं ये मेरे बराबर उमर की', ‘जो कभी था बाप के भी बाप का परिचय/ सिर्फ़ उतना सा ही तो है आपका परिचय', ‘सिद्ध कर दूँगा कि घुँघरु हूँ मैं अलबेला/ मुझसे करवा दीजिए बस थाप का परिचय'।