दैहिक नैकट्य का बहुआयामी प्रकटन ज़्यादातर अनंग और रति के युग्म में, कभी पुष्पधन्वा संग पुष्पधन्वा की सहगामिता में या फिर रति सह रति के मदनोत्सव में! इसके इतर स्मर और रति पृथक पृथक संग चतुष्पाद प्राणी वगैरह वगैरह! आशय यह कि देह राग का विस्तार देह साम्य से देह असाम्य तक! आयु, जाति, धर्म, भाषा, रंग, सौंदर्य, आंचलिकताओं की सरहदों और सल्तनतों को लांघते हुए बारहा!