जब कोई आप्त (वस्तु के गुण-धर्म का यथार्थ ज्ञाता) व्यक्ति, अन्य व्यक्ति को बोध कराने की भावना से, कथन करता है तब वक्ता के कथन से उस वस्तु के सम्बन्ध में ' सामान्य ' ज्ञान प्राप्त करने की चित्त वृत्ति आगम या शब्द प्रमाण कहलाती है।
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बुरी आदतों की अनदेखी न करें स्वतंत्रता श्रीमदभागवतम सर्वोत्कृष्ट है जिह्वा एवं वाणी की आतुरता माता पिता का आदर करना एकाग्र चित्त वृत्ति अँधा अनुसरण ना करें भाग्य को स्वीकारे भाग-7 भाग्य को स्वीकारे भाग-6 भाग्य को स्वीकारे भाग-5 भाग्य को स्वीकारे भाग-4 भाग्य को
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अगर आपकी ऐसी कोई चित्त वृत्ति है तो आप तुरंत हलके में ले लिए जायेंगे-और अगर कहीं अपने ऐसे हुनर के चलते आप कोई ठीक ठाक रोजगार पाने से रह गए तो फिर तो उपहास की धार और तेज हो जाती है-' देखो तो पढ़े फारसी बेचें तेल '...
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राहु को साधने के लिये सबसे पहले अपनी चित्त वृत्ति को साधना जरूरी है, जब मन रूपी चित्त वृत्ति को साधने की क्षमता पैदा हो जाती है तो शरीर से जो चाहो वही कार्य होना शुरु हो जाता है क्योंकि कार्य को करने के अन्दर कोई अन्य कारण या मन की कोई दूसरी शाखा पैदा नही होती है।
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राहु को साधने के लिये सबसे पहले अपनी चित्त वृत्ति को साधना जरूरी है, जब मन रूपी चित्त वृत्ति को साधने की क्षमता पैदा हो जाती है तो शरीर से जो चाहो वही कार्य होना शुरु हो जाता है क्योंकि कार्य को करने के अन्दर कोई अन्य कारण या मन की कोई दूसरी शाखा पैदा नही होती है।
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जिह्वा एवं वाणी की आतुरता माता पिता का आदर करना एकाग्र चित्त वृत्ति अँधा अनुसरण ना करें भाग्य को स्वीकारे भाग-7 भाग्य को स्वीकारे भाग-6 भाग्य को स्वीकारे भाग-5 भाग्य को स्वीकारे भाग-4 भाग्य को स्वीकारे भाग-3 भाग्य को स्वीकारे भाग-२ भाग्य को स्वीकारे भाग-१
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देखा जाए तो किसी मंत्र का जाप या इष्ट का ध्यान, पूजा पाठ जो मन को एकाग्रचित्त कर ध्यान की अवस्था द्वारा चित्त वृत्ति को सुदृढ़ स्वस्थ करने की प्रक्रिया मानी जाती है, कई बार मन स्थिर रख पाने में उतनी कारगर नही होती पर लेखन चूँकि समग्र रूप से एक प्रयास है व्यक्ति को एक केन्द्र में अवस्थित रखने में सहायक होता है, तो यह ध्यान के बाकी अन्य उपायों की तुलना में अधिक कारगर ठहरता है..
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आप प्रायः तुच्छ तथा निरर्थक वस्तुओं से, सम्भावित वस्तुओं से और पूर्वकालिक वस्तुओं से भयभीत होंने लगेंगे | आपके विचार जो अपने दिमाग में दौड़ रहे होंगे-ऐसे प्रतीत होंगे जैसे किसी बंद परिपथ पर रफ़्तार से दौड़ रहे हों | और समय के साथ वो विचार अस्पष्ट, अस्पृश्य और सहभागी करने योग्य नहीं रहेंगे | आपकी चित्त वृत्ति का प्रकृति प्रत्यक्षीकरण का भी यही हाल होगा जब तक वो गूढ़ नहीं होते और फिर बाद मे वह धुंधले पड़ने लग जायेंगे |