ईसा के पंख सब / झड़ गये झाड़े गये / सत्य की देवदासी-अंगिया / उतारी गयी / उघारी गयी / सपनों की आँतें सब / चीरी गयीं, फाड़ी गयीं / बाक़ी सब खोल है / ज़िन्दगी में झोल है ''.... नगर की व्यथाएँ, समाजों की कथाएँ / मोर्चों की तड़प और मकानों के मोर्चे / मीटिंगों के मर्म-राग, अंगारों से भरी हुई प्राणों की गर्म राख।
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नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया-जिन लोगो को जहन्नम मे अज़ाब दिया जा रहा था इनमे से एक आदमी के जबड़ो और बाछो को गुद्दी तक चीरा जा रहा था, इसकी नाक के नथने भी गुद्दी तक चीरे जा रहे थे, और इसकी आंखे भी गुद्दी तक चीरी जा रही थी | नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम के पूछने पर हज़रत जिब्रील ने फ़रमाया-ये आदमी सुबह अपने घर से निकलता और झूट बोलता जो दुनिया के किनारो तक फ़ैल जाता | (बुखारी व मुस्लिम)