भरे हुए गाल जो अक्सर दो पैग पीने के बाद लाल नज़र आते, ऊँचा कद, खुलते कंधे, घने काले बाल और भेदती हुई नज़र! और फिर दीनानाथ जी का चुरुट पीने का अंदाज।
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निष्कर्ष, जैविक मनश्चिकित्सा के जर्नल में प्रकाशित दिखाने के लिए, कि ग्रे बात ऊतक के नुकसान जो क्रमशः नियंत्रण स्मृति, चेहरा पहचान और समन्वय, अर्थात् हिप्पोकैम्पस, चुरुट के आकार का, और सेरिबैलम मस्तिष्क के क्षेत्रों में केंद्रित है.
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एक कप बढ़िया सी चाय पिला दो......और अगर इज़ाज़त दो तो मै एक चुरुट पी लूँ...अब पी ही लेता हूँ....जानता हूँ तुम मना तो नहीं करोगी तो हाँ भी नहीं कहोगी.....मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया....हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाता चला गया.....
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आपके चरणों में विनती है, प्रभो, हमसे हमारा नाअग्रा न छीनें!मुंह में चुरुट दाबे रघुराज ने अनमनस्क नज़रों से एक बार अनामदास की कोमलता का जायज़ा लिया, फिर टहलते हुए ऊंची फ्रेंच खिड़की के निकट वीनस की नंगी देह के नज़दीक जाकर खड़े हो गए.
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जैसे बुद्धिजीवी कहलाने के लिये कंधे पर झोला लटकाना जरूरी होता है शायद उसी प्रकार “ बड़े प्रगतिशील लेखक ” कहे जाने के लिये चुरुट पीना जरूरी होता होगा … मैंने तो कभी सिगार देखा नहीं है, हाँ कास्त्रो के फ़ोटो बहुतेरे देखे हैं …
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शिक्षक इनमे मिले सर्टिफिकेट से अपनी इन्क्रीमेंट बढ़ा सकेंगे और आप देख लीजिएगा कल को उन्हीं मठाधीशों, महंतों को रजनीगंधा की लड़ियों से सम्मानित करते हुए इस पर दाल मखनी बनाने के लिए बुलाया जाएगा जो अभी इत्मिनान से बैठकर चुरुट सेवन कर रहे होंगे, अनार गोली खाकर हेवी लंच ठिकाने लगा रहे होंगे ताकि डिनर के लिए स्पेस क्रिएट हो सके.
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मगर जिस वक़्त बम्बई में जहाज़ से उतरा और काले कोट-पतलून पहने, टूटी-फूटी अंगे्रजी बोलते मल्लाह देखे, फिर अंगे्रजी दुकानें, ट्रामवे और मोटर-गाडियाँ नज़र आयीं, फिर रबड़वाले पहियों और मुँह में चुरुट दाबे आदमियों से मुठभेड़ हुई, फिर रेल का स्टेशन, और रेल पर सवार होकर अपने गाँव को चला, प्यारे गाँव को जो हरी-भरी पहाडियों के बीच में आबाद था, तो मेरी आँखों में आँसू भर आये।
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उन्हीं ज्वालामुखियों के दल में से एक ने / सीसे-जैसी लम्बी-लम्बी आसमानी हदों तक / लम्बी चुरुट सुलगायी / दाँतों से होठ दाब जानें किस तैश में / चेहरे की सलवटें और रौबदाब की / गड़गड़ाते हुए वह कहने लगा-हे मूर्ख, देख मुझे पहचान / मुझे जान / मैं मरा नहीं हूँ / देखते नहीं हो क्या / मेरी यह सिगरेट धुँआती है अब तक / मेरी आग मुझमें है जल रही अब भी।
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तुम मुझे चारों तरफ से बांध दो छीन लो मेरी पुस्तकें और चुरुट मेरा मुंह धूल से भर दो कविता मेरे धड़कते ह्रदय का रक्त है मेरी रोटी का स्वाद है और आंसुओं का खारापन है यह लिखी जायेगी नाखूनों से आंखों के कोटरों से छुरों से मैं इसे गाऊंगा अपनी कैद-कोठरी में स्नानघर में अस्तबल में चाबुक के नीचे हथकडियों के बीच जंजीरों में फंसा हुआ लाखों बुलबुले मेरे भीतर हैं मैं गाऊंगा मैं गाऊंगा अपने संघर्ष के गीत।