इस सुबह के तो खैर ठाठ कुछ निराले ही थे. मैं अपने घर की छत पर एक कोने में ‘पानी वाली डायन ' किताब हाथ में लिए था.घर की छतें भी छोटा मोटा अजायबघर होती हैं.कहीं मटकी में डलियों वाला नमक है तो किसी में पिछली दीवाली पर की गयी सफेदी का बचा हुआ चूने का पानी है.पतंग और चरखी भी इसी छत पर हैं.पर सबसे बड़ी चीज़ है, छत पर रखा रहता है वो दुर्लभ एकांत जिसमें सुरक्षित है वह इंतज़ार जो सामने की किसी छत पर आने वाली प्रेयसी के लिए किया जाता है.