देश के धर्म स्थान, मित्र स्थान और जन्मस्थान को छोटाकर, केवल भोगस्थान को महत्व देने से उपरी तौर पर लगता है कि देश की श्रीवृद्धि हो रही है | यह छद्मवेशी सर्वनाश हमारे लिए बहुत ही भयावह है | ”
32.
कृष्ण की व्यथा नहीं कहा था मैंने कि गढ़ दो तुम मुझे मूर्तियों में नहीं चाहता था मैं पत्थर होना अलौकिक रहूँ यह भी नहीं रही चाहना मेरी, पर मानव तुम कितने छद्मवेशी हो एक ओर तो कर देते हो मंदिर में स्थापित...
33.
वैसे ही छद्मवेशी प्यार भी कुछ दिनों तक दिल बहलाने का साधन हो सकता है, परन्तु आंतरिक व्यक्तित्व की परतें खुलते ही वह काफ़ूर होने लगता है, और सिर्फ़ शिक़ायतें रह जाती हैं, खुद से, उनसे और सारे ज़माने से ।
34.
इस प्रकार के छद्मवेशी, स्वार्थी और पंचमार्गी तत्व किसी भी सांस्कारिक और व्यवस्थित प्रणाली में तो नहीं पनप सकते, पर जहाँ नेतृत्व ' बड़े लोगों ' के हाथ में रहता हैं वहाँ इस प्रकार के तत्त्वों के उत्पन्न और पोषित होने की बड़ी संभावना रहती है ।
35.
इस हम गाँधी जी के बंदरों को जाने दें … हम भले अपने आकाओं से मजबूर हैं लेकिन आम जन को हम यही सीख देना चाहेंगे कि अपनी आँख कान खुले रखें और बुराइयों, अत्याचार और छद्मवेशी आस्तीन के साँपों के खिलाफ़ अपनी आवाज़ को बुलंद किया जाए …
36.
बार-बार ठगे जाने के बाद १ ५-२ ० साल में जनता के सब्र का बाँध टूट जाता है और वह किसी अवतार, महानायक या चमत्कारिक नेत्रत्व की मृग तृष्णा में किसी छद्मवेशी स्वामी का अन्धानुकर्ता या नए पूंजीवादी राजनैतिक ध्रवीकरण की रासायनिक प्रक्रिया का रा मटेरिअल बन कर रह जाता है.
37.
अरे इससे उस बलात्कार की शिकार लड़किओं को कहन से इंसाफ मिलेगा? इंसाफ तो तब माना जा सकता है जब समाज के स्वंभु ठेकेदार ऐसी सताई हुई लड़किओं को सिर् उठा कर जीने का अधिकार दें, वर्ना ए छद्मवेशी ठेकेदार ऐसी सताई हुई लड़किओं को तने मार मार कर उनका और घरवालों का जीना हराम कर देते हैं.
38.
आज के आधुनिक युग में जब अनेक छद्मवेशी रावण समाज में खुलेआम घूम रहे हैं और नारियों का शारीरिक शोषण करते हुए उनसे व्यभिचार कर रहे हैं, तो सहज ही सवाल उठता है कि वास्तव में व्यभिचारी कौन है लंकापति रावण या आज के व्यभिचारी चाहे वह शिक्षक हों, नेता हों, पुलिसकर्मी हों, अफसर हों या घर-परिवार की चारदीवारी में रिश्तों को नापाक करते ऐसे व्यभिचारी, जो रावण को भी शर्मसार कर रहे हैं।