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छपते-छपते उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
31.अब तक प्रकाशित पुस्तकें: “अजनबी शहर में”, “संदर्भ”, “जंगल और हम” (कविता संग्रह),“शहर में आखिरी दिन”, “एक और वापसी”, “उसके हिस्से में”,“इक्कीस कहानियां” (कहानी संग्रह), कई एक चेहरे, आखर, छपते-छपते (उपन्यास), कोहरे की घाटी में, एक खूबसूरत सपना (यात्रा-वृतान्त), समाचार पत्रों की दुनिया में (पत्रकारिता)।

32.कुल मिलाकर प्रेस क्लब में निरंतर सक्रिय दिखने वाले प्रमुख स्थानीय हिंदी अखबारों प्रभात खबर, राजस्थान पत्रिका, सन्मार्ग, विश्वमित्र, छपते-छपते, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, भारत मित्र, जनसत्ता के पत्रकार अपनी वह उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाए, जिसकी कि इनसे उम्मीद थी।

33.पतलू भाई का परिणाम एक बार फिर आया और अनुक्रमांक अख़बार में छपते-छपते रह गया जबकि इस बार तो अनुक्रमांक एक सम संख्या थी और लोकसभा मार्ग पर बैठे ज्योतिषाचार्य के तोते ने जो चिठ्ठी निकाली थी उस हिसाब से तो पतलू भाई को उत्तीर्ण हो जाना चाहिए था।

34.चाहे वे कितनी भी महत्त्वपूर्ण, अप्रत्याशित, नवीन या बहुसंख्यक पाठकों की लोक-अभिरुचि की क्यों न हांे? उन्हें अंततः ‘ छपते-छपते ' काॅलम के अन्तर्गत ही संतोष करना पड़ता है या फिर अगले दिन की ‘ प्रतीक्षा-सूची ' में जगह पाने के लिए होड़ करना होता है.

35.उसकी मौत अख़बार के छपते-छपते कॉलम में ‘ शहर में एक रहस्यमयी दुर्घटना ' शीर्षक के अंतर्गत एक छोटी-सी दो पंक्ति की खबर बनकर रह जाती है और उसी के साथ भ्रष्ट व्यवस्था के असली चेहरों को बेनकाब करने वाली सारी रहस्यमयी जानकारियाँ और सारे सबूत भी हमेशा के लिए विलुप्त हो जाते हैं।

36.1973-1985 तक ‘दैनिक जनयुग ' तथा 1985-1989 तक ‘दैनिक देशबंधु' (म.प्र.) के दिल्ली ब्यूरो में।अब तक प्रकाशित पुस्तकें: “अजनबी शहर में”, “संदर्भ”, “जंगल और हम” (कविता संग्रह),”शहर में आखिरी दिन”, “एक और वापसी”, “उसके हिस्से में”,”इक्कीस कहानियां” (कहानी संग्रह), कई एक चेहरे, आखर, छपते-छपते (उपन्यास), कोहरे की घाटी में, एक खूबसूरत सपना (यात्रा-वृतान्त), समाचार पत्रों की दुनिया में (पत्रकारिता)।

37.अगर इतनी तेज़ी से हमारी अर्थव्यवस्था बढ़ती तो देश कहां से कहां पहुंच जाता … अन्ना हज़ारे से पहले सैकड़ों जुड़े तो बाद में उनको समर्थन देने वालों की संख्या हज़ारों में पहुंच गई … मेरा लेख छपते-छपते शायद ये संख्या लाखों में पहुंच जाए … दरअसल, पूरे देश में बढ़ना शब्द जुड़ा कुछ ऐसी चीजों से जुड़ा है, जिनसे शायद कोई ना जुड़ना चाहे … ।

38.घर-बाहर ' (रवीन्द्रनाथ ठाकुर, 1961: श्यामानन्द जालान), ‘ छपते-छपते ' (मिहिल सेबेशियन, 1963: श्यामानन्द जालान), ‘ शेष रक्षा ' (रवीन्द्रनाथ ठाकुर, 1963: प्रतिभा अग्रवाल), ‘ मादा कैक्टस ' (लक्ष्मीनारायण लाल, 1964: श्यामानन्द जालान), ‘ छलावा ' (परितोष गार्गी, 1964: प्रतिभा अग्रवाल) एवं ‘ कांचन रंग ' (शंभु मित्र तथा अमित मैत्र, 1965: कृष्ण कुमार) नाटक प्रस्तुत किए गए।

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