सांस्थानिक आलोचकों के संबंध में बार्थ ने लिखा है कि उनकी बुद्धि छोटी और दृष्टि संकुचित होती है, वे संव्यूहन के शिकार हैं और साहित्य में बहुमत के झंडाबरदार हैं, अतएव साहित्य के आस्वाद में भागीदारी के लिए उनकी निरंकुशता को छिन्न-भिन्न करना आवश्यक है।
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एक-दूसरे मानव शरीरी पिशाचों की परस्पर खुश करने और रखने की इसी प्रवृत्ति का ही परिणाम है आज हर इलाके में नर पिशाचों के कई-कई समूह बन गए हैं जिनका एक ही काम रह गया है सामाजिक और नैतिक व्यवस्था को चाहे जैसे भी हो छिन्न-भिन्न करना और चतुर्दिक यही उद्घोष करना-अँधेरा कायम रहे...।
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आधुनिकता के इस पूर्वइतिहास पर बने रहने के लिए अब आखिर में अतियथार्थवाद: अतियथार्थवाद बेशक़ भाषा को एक स्वायत्त दरज़ा नहीं दे सका, चूंकि भाषा एक व्यवस्था है, और इस आन्दोलन का (रूमानी) मक़सद ही सारी नियमावलियों को छिन्न-भिन्न करना था-एक आभासी छिन्न-भिन्नता, क्योंकि कोई नियमावली नष्ट नहीं की जा सकती, केवल उसके साथ खिलवाड़ किया जा सकता है;
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आधुनिकता के इस पूर्वइतिहास पर बने रहने के लिए अब आखिर में अतियथार्थवाद: अतियथार्थवाद बेशक़ भाषा को एक स्वायत्त दरज़ा नहीं दे सका, चूंकि भाषा एक व्यवस्था है, और इस आन्दोलन का (रूमानी) मक़सद ही सारी नियमावलियों को छिन्न-भिन्न करना था-एक आभासी छिन्न-भिन्नता, क्योंकि कोई नियमावली नष्ट नहीं की जा सकती, केवल उसके साथ खिलवाड़ किया जा सकता है ;