98 फलोत्प्रेक्षा के उदाहरण है--तब मुख समता लहन को जल सेवत जलजात-तब पद समता को कमल जल सेवत इक पांय-बढ़त ताड को पेड यह मनु चूमन आकाश 99 रूपक अलंकार कहते है-जब एक वस्तु पर दूसरी वस्तु का आरोप किया जाए यथा मुख कमल है ।
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है कहाँ धेनु-दोहन-शिशु-नर्तन मौन सभी जलजात खड़े? मलयानिल झुरक-झुरक सहलाता कहाँ तुम्हारा मृदु आनन्? है कहाँ भानु को चढ़ा रहे जल वाटू-तपस्वि-गण देख गगन? वह स्थिति न भुलाए भूल रही बावरिया बरसाने वाली-क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन के वनमाली ॥३५॥ बावरिया बरसाने वाली 15 प्रिय! इस विस्मित नयना को कब आ बाँहों में कस जाओगे ।
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, जाग तुझको दूर जाना, जाने किस जीवन की सुधि ले, जीवन दीप, जीवन विरह का जलजात,जो तुम आ जाते एक बार, जो मुखरित कर जाती थीं, तुम मुझमें प्रिय, तेरी सुधि बिन, दिया क्यों जीवन का वरदान,दीपक अब रजनी जाती रे, दीपक चितेरा, दीपक पर पतंग, धीरे-धीरे उतर क्षितिज से, धूप सा तन दीप सी मैं, नीर भरी दुख की बदली |
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इस रंग बिरंगी दुनिया पर क्या रंग असर करता है, सब अपने रंग नहाए, दूजा रंग रास न आए, ना फाग जगा, न धमार उठी, न चंग असर करता है, आँखों के सहस ठिकाने तन-ताप लगे झुलसाने, ये देह बने जलजात हठात अनंग असर करता है, रंग श्यामल मधुर मिठौना, निर्गुण हो सगुण सलौना, साखी, बानी, कविता, पद और अभंग असर करता है, अबके वह रंग लगाना, बन जाये जग 'बरसाना', उत्सव का उज्ज्वल रंग मगर सबसंग असर करता है
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, जाग तुझको दूर जाना, जाने किस जीवन की सुधि ले, जीवन दीप, जीवन विरह का जलजात,जो तुम आ जाते एक बार, जो मुखरित कर जाती थीं, तुम मुझमें प्रिय, तेरी सुधि बिन, दिया क्यों जीवन का वरदान,दीपक अब रजनी जाती रे, दीपक चितेरा, दीपक पर पतंग, धीरे-धीरे उतर क्षितिज से, धूप सा तन दीप सी मैं, नीर भरी दुख की बदली | पुरस्कारों से समानित किया गया १९७९:साहित्य अकादेमी फेल्लोव्शिप १९८२:ज्नंपिथ पुरस्कार १९५६:पदम् भूषण १९८८:पदम विभूषण