इस पर मैंने जब समुद्र के पास जाकर उसकी ऐसी प्रशंसा की तो वह जलतल को फाड़ता हुआ ऊपर उठा और बोला, “ मुने! मैं कोई धन्य नहीं हूं, धन्य तो वह वसुंधरा है, जिसने मुझ जैसे कई समुद्रों को धारण कर रखा है और वस्तुत: सभी आश्चर्यों की निवास भूमि भी वह भूमि ही है | ”