* * ** जलती मशाल में तेल कितना है, * * कम पड़े तो देह की चर्बी जलाने का, * * फैसला रखो...
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धर्म क्या उनका है क्या ज़ात है ये जानता कौन घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन जलती मशाल लिए जो लोग नज़र में आये
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हसन बसरी को एक दिन लोगों ने देखा गया कि वह एक हाथ में पानी का लोटा लिए और दूसरे हाथ में जलती मशाल लिए भागे चले जा रहे थे.
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अगर कबीर का एक शब्द उधार लूँ तो कहना पड़ेगा-' माया ' और अगर निराला के निकट जाऊँ तो ' जलती मशाल ' जैसे दो शब्दों में कही जा सकेगी बात।
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इसलिए दूसरों पर आवाज उठाने वालों को सोचना होगा कि पहले वह खुद को देखें और पत्रकारिता की आवाज बुलंद करने वाले उस शख्स को सलाम करें, ताकि पूरा देश पत्रकारिता की जलती मशाल से तप सके।
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शायद इसीलिए आज जब ' ' खो रहा दिशा का ज्ञान स्तब्ध हैं पवन चार '' का चहुँओर माहौल है, ऐसे में '' भूधर ज्यों ध्यानमग्न केवल जलती मशाल '' उदय प्रकाश के अलावा और कोई नहीं है, कोई हो भी नहीं सकता।
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किन्तु लोककल्याण किया करते हैं जो, गाँधी, बुद्ध समान आप बन जाते हैं॥ मानवता को राह दिखाने की खातिर, वे मानव जलती मशाल हो जाते हैं॥ होती है जितनी विशालता, उतनी ही, भर पाती है धार पात्र में पानी की।
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जलती मशाल दे हाथों में, जो कहते अपना घर फूंको! अपने भ्राता के प्राण हतो, बहनों की इज्जत पर थूको! होकर विवेक से शून्य, इशारे पर जिसके आगे बढ़ते! वे अधम तुम्हारे क्या लगते, जो पाप तुम्हारे सिर मढ़ते!.
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ग़ज़लवो तो उलझ के रह गये गोरी की चाल पे. हम तो रिसर्च कर रहे हैं आटा दाल पे.सूखे पड़े थे कोई उन्हें पूछता न था,बारिश हुई तो आ गये नाले उछाल पे.अँधों को रोशनी से कोई वास्ता नहीं,पाबन्दी वो लगा रहे जलती मशाल पे.मँहगी हुई है ज़िन्दगी सस्ती है मौत क्यों...
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ग़ज़लवो तो उलझ के रह गये गोरी की चाल पे. हम तो रिसर्च कर रहे हैं आटा दाल पे.सूखे पड़े थे कोई उन्हें पूछता न था,बारिश हुई तो आ गये नाले उछाल पे.अँधों को रोशनी से कोई वास्ता नहीं,पाबन्दी वो लगा रहे जलती मशाल पे.मँहगी हुई है ज़िन्दगी सस्ती है मौत क्यों