(७ ०) जैसे सभी नदियों के जल समुद्र को विचलित किए बिना परिपूर्ण समुद्र में समा जाते हैं, वैसे ही सब भोग जिस संयमी मनुष्य में विकार उत्पन्न किए बिना समा जाते हैं, वह मनुष्य शान्ति प्राप्त करता है, न कि भोगों की कामना करने वाला।
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हालांकि ऐस-ऐसे भारी रोग है कि जिसका कुछ हिसाब भी नहीं हो सकता है, बलके रतनागर सागर को भी देखिये कि उसको कैसा भारी रोग किया है कि जो तमाम जल समुद्र का खारा जहर कर दिया है, और दुनिया के भुलाने के वास्ते यह कैसा जाल चलाया है कि समुद्र में जो जल खारा हो गया हौ वोह रामचन्द्रजी महाराज के सराप से हुआ है।
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हालांकि ऐस-ऐसे भारी रोग है कि जिसका कुछ हिसाब भी नहीं हो सकता है, बलके रतनागर सागर को भी देखिये कि उसको कैसा भारी रोग किया है कि जो तमाम जल समुद्र का खारा जहर कर दिया है, और दुनिया के भुलाने के वास्ते यह कैसा जाल चलाया है कि समुद्र में जो जल खारा हो गया हौ वोह रामचन्द्रजी महाराज के सराप से हुआ है।