' आधुनिक वैज्ञानिकों ' के शोध कार्य से भी यह तो सबको आज पता चल गया है कि भारत में दक्षिणी-पश्चिमी मॉनसून और वार्षिक ' जल-चक्र ' की स्थापना में अरब सागर से, विशेषकर उत्तर-पूर्वी हिमालयी क्षेत्र तक, वायु की सहायता से सागरजल के वाष्पीकरण द्वारा, सूर्य की (मानव रूप में परशुराम / ' दशरथी ' राम के ' अग्नि-बाण ' समान) किरणों का एक महत्वपूर्ण रोल है जिसके कारण भारत को ' सोने की चिड़िया ' माना गया है अनादि काल से...
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यद्यपि आज सब शायद जानते हैं कि ' हिन्दुओं ' द्वारा कथित ' पञ्च-तत्वों ' अथवा ' पञ्च भूतों ' के भिन्न-भिन्न प्राकृतिक स्वभाव के कारण भारत भूमि पर प्रति वर्ष दक्षिण-पश्चिम मॉनसून और बादलों की राह में बाँध समान हिमालय द्वारा जनित अनंत जल-चक्र संभव हो पाया हजारों मील लम्बी और ऊंची पश्चिम से पूर्व तक फैली ' शक्ति-पीठों ' वाली हिमालयी श्रृंखला का जम्बूद्वीप के उत्तर में स्थित समुद्र के जल को दक्षिण की ओर धकेल कर धरती के कोख से ही उत्पन्न हो कर...