जिसका रामू और जिया हमेशा खंडन करते रहे लेकिन अब जाकर मालूम चला है कि भले ही उनका रामू से रोमांस चला हो या न चला हो लेकिन रामू के मुख्य सहायक निर्देशक कनिष्क गंगवाल के लिये तो जिहा का जिया जरुर धड़क रहा है.
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पाँच कहानी संग्रह [मसालेवाला घोड़ा(1959,1973), जे मैं मर जावां(1965), शीशे दा समुंदर(1968), फुल्ल खिड़े हन(1971)(संपादन), सर दा बुझा(1973)],तीन उपन्यास [जीजा जी(1961), पीला गुलाब(1975) और इक फुल्ल मेरा वी(1986)], दो नाटक [नौकरियाँ ही नौकरियाँ(1960), लौढ़ा वेला (1961) तथा कुछ एकांकी नाटक], एक आत्मकथा-किहो जिहा सी जीवन के अलावा अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
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अनाम जी माफी चाहुंदी हाँ कि कई दिन तों आपजी दे ब्लोग ते नहीं आयी असल विच कम्पयूटर दी चंगी जानकार नहीं हाँ अजे तक वी सब कुझ खिलरिया जिहा है जिस कर के दिमग विचों निकल जान्दा है बाकी तुहडियां रचना बारे तां इक ही शब्द है लाजवाब इह कमाल तुसीं ही कर सकदे हो कि दो अखरां विच पूरी जिन्दगी लिख देनी बहुत बहुत बधाई