विभिन्न धर्मों, सम्प्रदायों, भाषाओं या संघों से जुड़ा व्यक्ति अपने से सम्बंधित प्रचलित जीवन-प्रणाली से चलते हुए क्रमशः विकसित और परिष्कृत होने का प्रयास करता रहता है।
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समीक्षक डा. मधु चतुर्वेदी ने बताया कि इसमें वर्णित घटनायें पाश्चात्य जीवन-प्रणाली, सभ्यता एवं संस्कृति के अतिरिक्त वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य एवं भौतिक प्रगति को बडे रुचिकर ढंग से चित्रित करतीं हैं।
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जीवन-संबंधी इस्लामी दृष्टिकोण और इस्लामी जीवन-प्रणाली के हम इतने प्रशंसक क्यों हैं? सिर्फ़ इसलिए कि इस्लामी जीवन-सिद्धांत इन्सान के मन में उत्पन्न होने वाले सभी संदेहों ओर आशंकाओं का जवाब संतोषजनक ढंग से देते हैं।
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इस देश में ऋषियों की जीवन-प्रणाली का और ऋषियों के ज्ञान का अभी भी इतना प्रभाव है कि उनके ज्ञान के अनुसार जीवन जीनेवाले लोग शुध्द, सात्विक, पवित्र व्यवहार में भी सफ़ल हो जाते हैं और परमार्थ में भी पूर्ण हो जाते हैं।
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तमाम सुख-सुवि धायुक् त जीवन आख़ि र डगमगा जाता है, ओढ़ी हुई वि चारधारा और जीवन-प्रणाली उसे भीतर से ऐसा स् खलि त करती है कि ' आस् था ' ही अपना मार्ग नहीं बदलती बल् कि प्रत् येक अवस् थि ति का अति रेक ही बदल जाता है।
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वास्तव की वीभत्सता की कसौटी पर चांदनी खोटी दिखती है, कवि अपनी काव्यपरम्परा का मूल्यांकन करता है और चारण काल से लेकर छायावाद तक की कविता को तात्कालिक परिस्थिति अथवा जीवन-प्रणाली पर घटित करके समझ लेता था ; किन्तु फिर भी आज के जीवन के दबाव की अभिव्यंजना का मार्ग उसे नही दीखता।
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प्रभु-कृपा का निरन्तर अनुभव करना, उसी पर अटूट विश्वास रखना, प्रभु सर्व प्रकार से सर्वदा भक्त की रक्षा करेगें, यह दृढ़ विश्वास बनाये रखते हुए जीवन की हर अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थिति में विवेक और धैर्य बनाये रखना तथा अशक्य या सुशक्य, सहज या कठिनतम, हर स्थिति में प्रभु श्रीकृष्ण का ही अनन्य आश्रय रखना पुष्टिमार्गीय जीवन-प्रणाली की अनिवार्य शर्त है।
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लोग इसी बँटी हुई जीवन-प्रणाली को लेकर भी अपने दिन काट रहे थे ; मान बैठे थे कि जैसे जुकाम होने पर एक नासिका बन्द हो जाती है तो दूसरी से श्वास लिया जाता है-तनिक कष्ट होता है तो क्या हुआ, कोई मर थोड़े ही जाता है?-वैसे ही श्वास की तरह नागरिक जीवन भी बँट गया तो क्या हु आ...
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प्रभु-कृपा का निरन्तर अनुभव करना, उसी पर अटूट विश्वास रखना, प्रभु सर्व प्रकार से सर्वदा भक्त की रक्षा करेगें, यह दृढ़ विश्वास बनाये रखते हुए जीवन की हर अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थिति में विवेक और धैर्य बनाये रखना तथा अशक्य या सुशक्य, सहज या कठिनतम, हर स्थिति में प्रभु श्रीकृष्ण का ही अनन्य आश्रय रखना पुष्टिमार्गीय जीवन-प्रणाली की अनिवार्य शर्त है।