जीवसांख्यिकी विधियों का प्रयोग मनुष्य, वनस्पति और प्राणियों के जैव तथा शरीरक्रिया विशेषताओं, जो उनके लिये उपयोगी और अनुपयोगी दोनों ही प्रकार के हैं, के अनुसंधान के लिये व्यवहार में लाया जाता है।
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प्रयोग-तकनीक और परिणाम, उदाहरणार्थ जीन (Gene) की आवृत्ति आबादी की जनन-पद्धति में परिवर्तन और उनकी खोज अथवा कायिक कोशिकाओं या सूक्ष्म जीवाणुओं पर विकिरण (Radiation) का प्रभाव ये सभी जीवसांख्यिकी के ही अंग हैं।
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जीवसांख्यिकी में अधिक आधुनिक प्रगति इस समस्या में निर्दिष्ट हैं कि किस प्रकार के प्रयोगों की कल्पना की जाय कि अपेक्षाकृत कम से कम प्रेक्षण के आधार पर सांख्यिकी की समस्याओं का समाधान हो सके।
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जीवसांख्यिकी में अधिक आधुनिक प्रगति इस समस्या में निर्दिष्ट हैं कि किस प्रकार के प्रयोगों की कल्पना की जाय कि अपेक्षाकृत कम से कम प्रेक्षण के आधार पर सांख्यिकी की समस्याओं का समाधान हो सके।
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जीवसांख्यिकी का उपयोग आज विशुद्ध विज्ञान जैसे वनस्पतिविज्ञान, प्राणिविज्ञान, जीवाणुविज्ञान, शरीरक्रियाविज्ञान इत्यादि से लेकर व्यावहारिक विज्ञान जैसे कीटविज्ञान, जैविकी, मत्स्यविज्ञान, उद्यानविज्ञान, शस्यविज्ञान, औषधप्रभावविज्ञान, लाक्षणिक औषधि विज्ञान, कवक से फैली बीमारियों के अध्ययन, जीवन बीमा कंपनियों के अध्ययन इत्यादि में समान रूप से हो रहा है।
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फ्रांसिस गॉल्टन ने 1901 ई में लिखा था कि “”जीव सांख्यिकी का मुख्य लक्ष्य ऐसे उपकरण प्रदान करने हैं, जिनके द्वारा जीवविकास के अंतर्गत घटित होनेवाले उन प्रारंभिक परिवर्तनों का, जो इतने नगण्य हैं कि अन्य विधियों से उनका पता नहीं लगाया जा सकता, अनुसंधान ठीक ठाक हो।“” उन्होंने फिर कहा “”आधुनिक आँकड़ा विधियों का जीवविज्ञान में प्रयोग जीवसांख्यिकी है“”।
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फ्रांसिस गॉल्टन ने 1901 ई में लिखा था कि “”जीव सांख्यिकी का मुख्य लक्ष्य ऐसे उपकरण प्रदान करने हैं, जिनके द्वारा जीवविकास के अंतर्गत घटित होनेवाले उन प्रारंभिक परिवर्तनों का, जो इतने नगण्य हैं कि अन्य विधियों से उनका पता नहीं लगाया जा सकता, अनुसंधान ठीक ठाक हो।“” उन्होंने फिर कहा “”आधुनिक आँकड़ा विधियों का जीवविज्ञान में प्रयोग जीवसांख्यिकी है“”।