यह सर्कादिया रिदम / जैव घडी जो चुबीस घंटों की गतिविधियों का संचालन करती है क्या ह्यूमेन सेल और क्या मेरीन एल्गी दोनों में एक समान काम करती है ।
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ऐसे ही शिफ्टों में काम करने वालोंको जैव घडी की टिक टिक सोने को कहती है, जबरिया जागतें हैं ये लोग सालों साल शिफ्टों में काम करने के बाद भी ।
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न सिर्फ दैनिक और सीजनल (मौसमी) गतिविधियों के पैट्रंस का यहीं जैव घडी निर्धारण करती है, स्लीप साइकिल (निद्रा से) से लेकर बटरफ्लाई-माईग्रेशन तक
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ऐसे ही शिफ्टों में काम करने वालोंको जैव घडी की टिक टिक सोने को कहती है, जबरिया जागतें हैं ये लोग सालों साल शिफ्टों में काम करने के बाद भी ।
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इक तरफ शिफतिए सामाजिक जीवन से कट जातें हैं दूसरी तरफ घर परिवार से भी. चौबीस घंटा चलने वाली हमारी जैव घडी हमारे भौतिक,मानसिक व्यवहार परिवर्तन का विनियमन करती है.
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अखिलेश रेड्डी साहिब की यह रिसर्च उन स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों पर एक नै दृष्टि से देखने का रास्ता खोलती है जिनके मूल में इस जैव घडी का असंतुलित हो जाना है.
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निद्रा के चक्रों (स्लीप साइकिल्स),हार्मोन स्राव (इंडो-क्रा-इन सिस्टम),बॉडी टेम्प्रेचर,अन्य अनेक शारीरिक(शरीर क्रियात्मक) प्रक्रियाओं को हमारी कुदरती जैव घडी (सर्कादियंन रिदम,बायोलोजिकल क्लोक)असर ग्रस्त करती है ।
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इक तरफ शिफतिए सामाजिक जीवन से कट जातें हैं दूसरी तरफ घर परिवार से भी. चौबीस घंटा चलने वाली हमारी जैव घडी हमारे भौतिक, मानसिक व्यवहार परिवर्तन का विनियमन करती है.
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चिंता नौकरी की, काम के शिफ्टों में लगातार बदलते वाहियात घंटे, नींद का अभाव, सर्कादियन रिदम (जैव घडी का गड़बडानायुवा भीड़ को भी मधुमेह की कगार पर ले आरहा है.
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तब हमारी मेताबोलिज्म्म गडबडा जाती है, जैव घडी कहती है हमारे शरीर से भाई सोना है, हम खाना खा रहें होतें हैं, ऐसे में जैव घडी केलोरी ठीक से खर्च नहीं कर पाती ।